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डा० संजीव सर्राफ एवं श्री विवेकानन्द जैन के संयोजकत्व में सम्पन्न इस संगोष्ठी में देश के कोने-कोने से कुल पन्द्रह विद्वानों ने अपने शोध आलेखों को प्रस्तुत किया । संगोष्ठी तीन सत्रों में सम्पन्न हई। प्रथम सत्र के मुख्य अतथि थे आसाम के श्री नरेन्द्र रारा तथा अध्यक्षता श्री सत्येन्द्र मोहन जैन (वाराणसी) ने किया। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन डा० अभय प्रकाश जैन (ग्वालियर) ने किया । श्री सत्येन्द्र मोहन जैन ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में पुरातात्त्विक प्रमाणों के आधार पर भट्टारकों की चर्चा की तथा उनके अवदान पर प्रकाश डाला।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रो० नलिन के० शास्त्री (दिल्ली) ने की तथा इस सत्र के मुख्य अतिथि थे श्री सतीश अजमेरा (ग्वालियर)। इस सत्र में डा० सुशीला सालगिया (पुष्पगिरि), डा० सुरेश बारोलिया (आगरा) एवं श्री बाबूलाल जैन सुधेश (टीकमगढ)आदि विद्वानों ने अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किये । अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. नलिन शास्त्री ने भट्टारक शब्द पर जमी परतों को हटाने हुए पूर्वाग्रहों को छोड़कर भट्टारक के असली स्वरूप को पहचानने पर बल दिया।
संगोष्ठी के तृतीय एवं समापन सत्र की अध्यक्षता डा० बी०के० जैन, सागर विश्वविद्यालय ने की। इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया उनमें मुख्य हैं- डा० कृष्णा जैन एवं डा० कान्ति जैन (ग्वालियर), डा० सुरेश जैन, डा० नलिन के० शास्त्री, श्रीमती सुनीता एवं श्रीमती रानी जैन।
बालाचार्य योगेन्द्र सागरजी ने अपने विद्वतापूर्ण वक्तव्य में कहा कि भट्टारक परम्परा का प्रादुर्भाव निग्रंथ परम्परा के प्रादुर्भाव के समय से या दूसरे शब्दों में भगवान श्रषभदेव के समय से ही अस्तित्व में है। धवला से प्रमाण देते हुए आपने कहा कि ‘सर्व कर्म भट्टान करोति इति परम सर्व भट्टारक' । दो पट्ट होते हैं- आचार्य एवं विचार पट्ट। वस्त्रधारी भट्टारक विचार पट्ट हैं क्योंकि जो कार्य नग्न साधु नहीं कर सकते, वह कार्य वे उन नग्न साधुओं की आज्ञा से करते हैं। लगभग १०० ग्रंथों का प्रमाण देते हुए आपने बताया कि चूंकि भट्टारकों द्वारा आर्यिका दीक्षा देने के उल्लेख मिलते हैं, अत: वे निश्चित ही दिगम्बर रहे होंगे क्योंकि आर्यिका दीक्षा देने वाला वस्त्रधारी नहीं हो सकता । अत: पञ्चपरमेष्ठि ही भट्टारक हैं। अन्त में संचालकद्वय डा० संजीव सर्राफ एवं श्री विवेकानन्द जैन (वाराणसी) ने आगन्तुकों का सहृदय साभार व्यक्त किया।
श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार एवं सराक पुरस्कार - २००५ ..
सराकोद्धारक सन्त, परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा से स्थापित श्रुत संवर्द्धन संस्थान, मेरठ द्वारा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वाले विशिष्ट विद्वानों को निम्नांकित
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