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________________ १२० ही नहीं लिखा गया है। जिन ग्रन्थों के आधार पर मूलाचार की रचना हुई है वे श्वेताम्बर परम्परा के मान्य बृहत्प्रत्याख्यान, आतुरप्रत्याख्यान, आवश्यकनियुक्ति, जीवसमास आदि हैं जिनकी सैकड़ों गाथाएँ शौरसेनी रूपान्तरण के साथ इसमें गृहीत हैं। वस्तुत: मूलाचार श्वेताम्बर परम्परा में मान्य नियुक्तियों, प्रकीर्णकों की विषयवस्तु एवं सामग्री से निर्मित है। दिगम्बर परम्परा इसे अपनी परम्परा का ग्रन्थ मानती है, किन्तु दिगम्बर परम्परा के बहुश्रुत विद्वान पं. नाथूरामजी प्रेमी ने निम्न आठ आधारों पर इसे कुन्दकुन्द की दिगम्बर जैन परम्परा से भिन्न परम्परा का ग्रन्थ स्थापित किया है १. मूलाचार और भगवतीआराधना की पचासों गाथाएं एक सी और समान अभिप्राय को प्रकट करने वाली हैं। अत: यह ग्रन्थ भगवतीआराधाना की परम्परा का है। २. मूलाचार की “अचेलकुद्देसीय" आदि दस कल्पों की जो गाथाएं हैं, वे गाथाएं मूलाचार और भगवतीआराधना में समान रूप से पायी जाती हैं। श्वेताम्बर परम्परा के “जीतकल्पभाष्य", नियुक्तियों और टीकाग्रन्थों में भी ये उपलब्ध हैं। "प्रमेयकमल मार्तण्ड" के स्त्रीमुक्तिविचार में प्रभाचन्द्र ने इनका उल्लेख श्वेताम्बर परम्परा की गाथा के रूप में किया है। ३. मूलाचार की "सेज्जागासणीसेज्जा" (३९१) नामक गाथा भी मूल आराधना (३०७) से मिलती है। इसमें यह कहा गया है कि वैयावृत्ति करने वाला मुनि रुग्ण मुनि का आहार औषधि से उपकार करे (आहार लाकर देने की परम्परा दिगम्बर मुनिवर्ग में प्रचलित नहीं है, वह श्वेताम्बर या यापनीयों की ही परम्परा है)। ४. भगवतीआराधना की १४४ वीं गाथा के समान इसकी ३८७ वी गाथा में आचारदशा, जीतकल्प आदि का उल्लेख है, जो यापनीय और श्वेताम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ हैं और आज भी उपलब्ध हैं। ५. मूलाचार की गाथा २७७, २७८, २७९ में संयमी मुनि और आर्यिकाओं को चार प्रकार के सूत्र काल शुद्धि आदि के बिना नहीं पढ़ना चाहिये। इनसे अन्य आराधना, नियुक्ति, मरण-विभक्ति, संग्रह, स्तुति, प्रत्याख्यान, आवश्यक और धर्मकथा आदि पढ़ना चाहिये। ये सब ग्रन्थ मूलाचार के कर्ता के समक्ष थे, परन्तु कुन्दकुन्द की परम्परा के साहित्य में इन ग्रन्थों के नाम उपलब्ध नहीं है, मात्र यही नहीं उस परम्परा में इन ग्रन्थों के पढ़ने की कोई परम्परा रही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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