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________________ A मूलाचार : एक अध्ययन : ११५ उल्लेख मूलाचार के कर्ता के रूप में होना अधिक महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। यह मात्र दिगम्बर परम्परा में कुन्दकुन्द के प्रति जो श्रद्धातिरेक है उसका ही परिणाम कहा जा सकता है। हम एक बात और यहाँ स्पष्ट कर देना चाहेंगे कि यदि “बारस्स अणुवेक्रवा” को छोड़कर कुन्दकुन्द के अन्य सभी ग्रन्थों की कुल २१ गाथाएं मूलाचार में समस्त रूप से पायी जाती हैं तो इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाल लेना कि यह आचार्य कुन्दकुन्द की कृति है, किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है । पुनः कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की जो गाथाऍ मूलाचार में मिलती हैं उनमें से अनेक श्वेताम्बर ग्रन्थों में भी मिलती हैं। यदि इसी दृष्टि से विचार करें तो मूलाचार और भगवती आराधना की ६५ गाथाएं समान हैं, किन्तु क्या इस समानता के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मूलाचार शिवार्य की रचना है । इससे भी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि श्वेताम्बर परम्परा के प्रकीर्णकों और आवश्यक निर्युक्ति की ३०० से अधिक गाथाएं मूलाचार में उपलब्ध होती हैं तो क्या इस आधार पर यह मान लिया जाए कि यह श्वेताम्बर परम्परा के किसी आचार्य की कृति है। मात्र २१ गाथाओं की समानता को लेकर इसे कुन्दकुन्द की कृति बताना समुचित नहीं है। दिगम्बर परम्परा के बहुश्रुत विद्वान पं. नाथूरामजी प्रेमी ने अनेक सबल तर्कों के आधार पर यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है कि यह ग्रन्थ कुन्दकुन्द का तो हो ही नहीं सकता, अपितु उनकी परम्परा का भी ग्रन्थ नहीं है। इस सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा तो हम ग्रन्थ की परम्परा पर विचार करते समय करेंगे और बतायेंगे कि यह ग्रन्थ कुन्दकुन्द की परम्परा का नहीं माना जा सकता । यहाँ तो मात्र प्रेमीजी के शब्दों में इतना ही कहना चाहेंगे कि “ इन सब बातों से मूलाचार कुन्दकुन्द की परम्परा का ग्रन्थ नहीं मालूम होता है। विद्वानों से निवेदन है कि वट्टकेर को कुन्दकुन्द बनाने का प्रयत्न न करके इस ग्रन्थ का जरा और गहराई से अध्ययन करके यथार्थ को समझने की चेष्टा करें। यह सुस्पष्ट है कि मूलाचार के कर्ता कुन्दकुन्द नहीं हैं" । मूलाचार के समीक्षात्मक अध्ययन के कर्ता स्वयं डॉ. फूलचन्द जैन ‘प्रेमी' भी यह स्वीकार करते हैं कि “उपर्युक्त समानताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मूलाचार और आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित ग्रन्थों में कुछ समानताएं अवश्य हैं फिर भी मूलाचार और आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के गहन अध्येता विद्वान भी मूलाचार को आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित नहीं कह सकते।” इससे फलित तो यही होता है कि उनकी दृष्टि से भी मूलाचार के कर्ता कुन्दकुन्द उसी मूलसंघ के प्रधान आचार्य थे, जिस परम्परा में उनके पश्चात् आचार्य वट्टकेर हुए, जिन्होंने उसी परम्परा के पोषक श्रमणों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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