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________________ मूलाचार : एक अध्ययन मूलाचार को आज दिगम्बर जैन परम्परा में आगमस्थानीय ग्रन्थ के रूप में मान्य किया जाता है। यह ग्रन्थ मुख्यतः साधु-साध्वियों के आचार से सम्बन्धित है। जैन परम्परा में अधिकांश आगमिक साहित्य मुख्यतः साधु-साध्वी के आचार अथवा उनके जीवन वृत्तों से सम्बन्धित है। मूलाचार भी एक आचारपरक ग्रन्थ है और यही कारण है कि धवला और जयधवला में इसकी गाथाओं को आचारांग की गाथा कहकर उद्धृत किया गया है। यद्यपि आचारांग भी मुनि - आचार का ग्रन्थ है, फिर भी आचारांग और मूलाचार में विषयवस्तु और प्रस्तुतीकरण की शैली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अन्तर है । सम्भवत: जब दिगम्बर परम्परा में आचारांग को लुप्त मान लिया गया, तो उसके स्थान पर मूलाचार को ही आचारांग के रूप में देखा जाने लगा। मूलाचार के सम्बन्ध में सर्वप्रथम विचारणीय प्रश्न यह है कि वह किस परम्परा का ग्रन्थ है? यह सुनिश्चित सत्य है कि यह श्वेताम्बर परम्परा का ग्रन्थ नहीं है। इसके दो कारण हैं - प्रथम तो यह कि यह मुनि के अचेलकत्व पर दिगम्बर परम्परा के समान ही बल देता है । यद्यपि आचारांग आदि कुछ प्राचीन स्तर के श्वेताम्बर मान्य आगम ग्रन्थों में अचेलकत्व का उल्लेख है, फिर भी वे अचेलकत्व पर उतना बल नहीं देते जितना कि मूलाचार में दिया गया है। आचारांग में अचेलकत्व का एकान्त रूप से प्रतिपादन नहीं हुआ है, उसके प्रथम श्रुतस्कन्ध में ही मुनि के वस्त्रग्रहण सम्बन्धी कुछ उल्लेख भी पाये जाते हैं। यही कारण था कि दिगम्बर परम्परा में उसे अस्वीकृत कर उसके भी लुप्त होने की घोषणा कर दी गयी । मूलाचार में मुनि के अचेलकत्व पर जो बल दिया गया है उससे स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ श्वेताम्बर परम्परा का नहीं है। दूसरे मूलाचार की भाषा मुख्यतः जैन शौरसेनी प्राकृत है। यह बात भिन्न है कि उस पर कहीं-कहीं महाराष्ट्री प्राकृत का प्रभाव है। कोई भी ग्रन्थ श्वेताम्बर परम्परा में शौरसेनी प्राकृत में नहीं लिखा गया है, अतः यह श्वेताम्बर परम्परा का ग्रन्थ नहीं हो सकता। इससे स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि क्या यह दिगम्बर परम्परा का ग्रन्थ है ? इसे स्पष्ट रूप से दिगम्बर परम्परा का ग्रन्थ भी नहीं कहां जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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