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________________ छाया: रुदन्तु नाम तम् जनमप्रेक्ष्यमाणानि दृढ नयनानि। तं हृदय ! किं विभज्यसे स्वाधीने चिंतयितव्ये ?||२२५।। अर्थ :- हे हृदय ! जेणे लोकने जोयो छे ते नयनो भले रूदन करे ! पण स्वाधीनपणे विचार करी शकवा छतां तुं शा माटे विदीर्ण थाय छे ? हिन्दी अनुवाद :- हे हृदय! जिसने लोक को देखा है वे नयन भले ही रोयें, किन्तु तं विचार करने में स्वतन्त्र होने पर भी क्यों विदीर्ण होता है? गाहा : नयणेहिं जोइया सा हियएण कओ य गरुय-पडिबंधो। सरिसेवि हु अवराहे विरहो हिययं दढं दहइ ।। २२६।। छाया: नयनाभ्याम् दृष्टवा सा हृदयेन कृतश्च गुरुक-प्रतिबन्धः। सदृशेऽपि खलु अपराधे विरहो हृदयं दृढं दहति ।।२२६।। अर्थ :- ते बाला नयनोवड़े जोवाई अने हृदयवड़े ममत्व करायु । बलेनो अपराध समान होवा छता पण विरह दृढरीते (अत्यंत) हृदयने बाळे छ । हिन्दी अनुवाद :- उस बाला को नयनों ने देखा और हृदय ने उससे प्रेम किय। दोनों का अपराध समान होने पर भी उसका विरह हृदय को जलाता है। गाहा : एत्थंतरम्मि सूरो भमिऊणं भुवण-मंडलमसेसं। अत्थ-गिरि-मत्थय-त्थो जाओ अद्धाण-खिन्नोव्व ।। २२७।। छाया : अत्रान्तरे सूर्यो भ्रान्त्वा भुवन-मण्डलमशेषम् । अस्तगिरि-मस्कस्थो जातोऽध्वनः-खिन्नेव ||२२७।। अर्थ :- एटलीवारमा सूर्य समस्त भुवनमण्डलमा भमीने मार्गथी खिन्नथयेला नी जेम अस्तगिरिनां मस्तक पर रह्यो। हिन्दी अनुवाद : - इतनी देर में सूर्य समस्त भुवनमण्डल में घूमकर मार्ग से खिन्न होकर अस्ताचल पर्वत पर आ गया। गाहा : निट्ठर-करेहिं भुवणं इमेण संतावियंति रोसेण । नज्जइव अत्थ-गिरिणा सीसाओ ढालिओ सूरो ।। २२८।। छाया : निष्ठुर-करै र्भुवन-मनेन संतापितमिति रोषेण । ज्ञायत इव अस्त-गिरिणा शीर्षात् पातितः सूर्यः ||२२८।। 126 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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