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गाहा :- दर्शन माटे चित्रवेगने प्रार्थना
तत्तो सहिहिं भणियं साहेज्जसु तस्स निग्घिण-मणस्स ।
जह-दिटुं हि सरूवं इमीए अइगरुय-पेम्माए ।। २१६।। छाया :
ततः सखीभि-भणितं कथय तस्य निघृण-मनसः |
यथा-दृष्टं खलु स्वरूपं अनया अतिगुरु प्रेम्णा ||२१६।। गाहा :- अन्नं च
जइ कहवि ताव वोलइ रयणी कुसलेण ता पभायम्मि।
उज्जाणम्मि गयाए दायव्वं दंसणमिमीए ।।२१७।। छाया :- अन्यच्च
यदि कथमपि तावद् गच्छति रजनी कुशलेन ततः प्रभाते।
उद्याने गतायै दातव्यं दर्शन-मस्यै ।।२१७।। अर्थ :- ते वखते सखीओए मने कहयु 'ते निर्दय मनवाळानुं आटला बधा पुष्कल प्रेमवडे तेणी जेवू स्वरूप जोयेलु छे ते ओमने कहेजे, अने वळी कोइ पण रीते रात्री सुखपूर्वक पसार थई जाय तो सवारमा उद्यानमां तेणीने दर्शन आपवा जोइए । हिन्दी अनुवाद :- उस समय सखी ने मुझसे कहा - अतिप्रेम से इसके द्वारा निर्दय मनवाले उनका स्वरूप जैसा देखा वैसा कहो । किसी भी प्रकार यह रात्रि सुखपूर्वक बीत जाए तो प्रात: कनकमाला को दर्शन देने के लिए आप उद्यान में आना । गाहा :
तहसणेण जीवइ न अन्नहा एस निच्छओ अम्ह ।
एवं बहुहा भणिया समागया तुम्ह पासम्मि ।। २१८।। छाया :
तद्दर्शनेन जीवति न्यान्यथा एव निश्चयोऽस्माकम् ।
एवं बहुधा भणिता समागता तव पार्श्वे ।।२१८|| अर्थ :- तेणी तमारा दर्शनवड़े जीवशे अन्यथा नहीं एवो अमाटो निश्चय छे। आ प्रमाणे कहेवायेली हुं तमाटी पासे आवी छ । हिन्दी अनुवाद :- वह आप के दर्शन से ही जीयेंगी अन्यथा नहीं, ऐसा हमारा मानना है । इस प्रकार कहवाई हुई मैं आपके पास आयी हूँ। गाहा :
एवं चूयलयाए भणियं सोऊण तीए वुत्तंतं। दुगुणतरो मे जाओ तव्विरहे गरुय-संतावो ।। २१९।।
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