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________________ अर्थ :- ते जोईने उपहासना वशथी में आ प्रमाणे कहयु - के “सखि-जन नजीक होवा छता पण शा माटे जोर जोरथी बोले छे ? हिन्दी अनुवाद :- यह देखकर उपहास से मैंने इस प्रकार कहा - कि “सखिजन पास होने पर भी तूं इतना जोर-जोर से क्यों बोल रही है? गाहा : कोउगवक्खित्त-मणो एसो तुह देइ नेय पडिवयणं । तं वयणं सोऊणं सविलक्खा किंचि संजाया ।।१७९।। छाया : कौतुक व्यक्षिप्त-मन एषस्तव ददाति नैव प्रतिवचनम् । तद् वचनं श्रुत्वा सा वैलक्ष्या किञ्चित् संजाता ।।१७९/ अर्थ :- कौतुकथी व्यक्षिप्त मनवाळो आ तने कोई प्रतिवचन नहि आपे सखिना ते वचन सांभळनी ते कांइक विलखी थई। हिन्दी अनुवाद :- कौतुक से व्यक्षिप्त मन वाला वह तुझे कुछ भी प्रत्युत्तर नहीं देगा, सखि का ऐसा वचन सुनकर वह कुछ कुम्हला गई। गाहा : एत्यंतरम्मि दिट्टा तेण जुवाणेणऽणंग-रूवेण । सज्झस-हरिसेहिं इमा ताहि अउव्वं रसं पत्ता ।।१८०।। छाया: अत्रान्तरे दृष्टा तेन यूना अनङ्ग-रूपेण । साध्वस-हर्षाभ्यां इयं तत्रऽपूर्वं रसं प्राप्ता ||१८०11 अर्थ :- एटलीवारमा अनङ्गरूपने धारण करनार ते युवान वड़े जोवाई व्यारे आणी भय अने हर्षवड़े अपूर्व रसने प्राप्त कर्यो। हिन्दी अनुवाद :- इतनी ही देर में अनङ्गरूपधारी उस युवक ने इसे देखा, तब इंसने भय और हर्ष द्वारा अपूर्व रस का पान किया। गाहा : तेणालोइयमेत्ता सोहग्ग-समन्नियं च अप्पाणं । जीवियमवि स-कयत्थं मन्नंता पुलइय-सरीरा ।।१८१।। छाया: तेनालोकित-मात्रे सौभाग्य-समन्विता चात्मानम्। जीवितमपि स-कृतार्थं मन्यमाना पुलकित-शरीरा।।१८१।। अर्थ :- तेनावड़े जोवा मात्रथी पोताने सौभाग्यवाळी अने पोताना जीवितने पण कृतार्थमानती पुलकित शरीवाळी थई। 111 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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