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________________ छाया: अत्रान्तरे तस्याः सखि-निवहः निज-गृहेषु संचलितः। साऽपि खलु बाला चलिता पुनः पुनः मां पश्यन्ती।।१४०।। अर्थ :- एटलीवारमा तेणीनो सखि-समूह पोत-पोताना घरे गयो। अने ते बाला पण बारम्बार मने जोती चाली। हिन्दी अनुवाद :- तभी उनका सखी-समूह अपने-अपने घर चला गया और कनकमाला भी बारबार मुझे देखती हुई चली गई। गाहा : वलिय-ग्गीवं तीए ससिणिद्ध-अवंग-दिट्ठि-दोरेण । आयड्डिय पच्छन्नं मह हिययं झत्ति अवहरियं ।।१४१।। छाया : वलित-ग्रीवं तया सस्निग्ध अपांङ्ग-दृष्टि-द्वारेण । आकृष्ट्य प्रच्छन्नं मम हृदयं झटिति अपहृतम् ।।१४१।। अर्थ :- वळोली डोकवाळी तेणीए स्नेहपूर्वक दृष्टिना अंतभाग वड़े खेचायेलु मारू हृदय जल्दी थी चोरी लीधु ! हिन्दी अनुवाद :- कंठ को घुमाकर स्नेहिल दृष्टि की अंतिम चितवन द्वारा आकृष्ट मेरा दिल शीघ्र ही चुरा लिया गया। गाहा : नाउं वहरिज्जतं मह हिययं तीए पय-विलग्गाइं । कूयंति नेउराई पुणो कुढिय-पुरिसोव्व ।।१४२।। छाया :। ज्ञात्वाअपहियमाणं मम हृदयं तस्याः पद-विलग्नानि । कूजन्ति नूपुराणि पुनः पुनः कुढित-पुरुषेव ।।१४२।। अर्थ :- मारू हृदय अपहरण करातु जाणीने तेणीना पगे लागेला अने नूपुरो बारंबार मूर्खपुरुषनी जेम अवाज करता हता। हिन्दी अनुवाद :- मेरे दिल का अपहरण होता जानकर उनके पैरों में रहे नूपुर बारबार मूर्ख पुरुष की तरह अवाज करने लगे। गाहा : मयणत्ता सा जंती अणमिस-नयणेहिं पुलइया ताव । जावुज्जाण-तरूहिं अंतरिया दिट्ठि-मग्गाओ।।१४३।। ३. कुढिय = दे० मूर्ख 99 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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