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आनन्दजी कल्याणजी पेढी के संस्थापक युगपुरुष श्रीमद् देवचन्द्र जी... : ९३
गेयात्मक बनाया कि मोक्षाभिलाषी आत्मसाक्षात्कार कर अपना मार्ग प्रशस्त कर सकता है। प्रमाण- नय, स्याद्वाद, निक्षेप त्रिपदी के आलम्बन से दार्शनिक भावों को तर्क और आगम सम्मत मौलिक तथा मनोवैज्ञानिक ढंग से नवीन ग्रंथों के प्रस्तुतीकरण से ऊपर चढ़ते हुए साधक अन्त में ऐसी आत्म- अनुभूति करता है कि मानो वह किसी शरणप्रद ताप - नियन्त्रक प्रांजल सर्वसौविध्य सम्पन्न कक्ष में पहुंच गया हो। आपने माताश्री धनदेवी के स्वप्न दर्शन को भावों द्वारा मूर्तरूप प्रदान करने एवं जिन श्रद्धालुओं के चित्त- विशुद्धि हेतु स्नात्रपूजा की सर्वोत्कृष्ट रचना की । भक्ति का यथार्थ अर्थ व्यक्त करते हुए आपने कहा कि अपने आराध्य के बताए मार्ग का अनुकरण करना ही वास्तविक आदर्शमय भक्ति है।
वि०सं० १८१२ भाद्रपद अमावस्या को अहमदाबाद में ९९ वर्ष की आयु में आपका देवलोकगमन हुआ। अहमदाबाद स्थित हरिपुरा उपाश्रय में आपके चरण चिन्ह प्रतिष्ठापित हैं । गतवर्ष २००३ में मुझे भी उसके दर्शन का सौभाग्य मिला।
आकृति को कागज में उतारने में जितनी कठिनाईयां होती हैं, उनसे कहीं अधिक विराट व्यक्तित्व को कागज पर लेखनी द्वारा समेटने में होती है। क्योंकि आकृति साकार होती है और व्यक्तित्व अनाकार । यहां जो कुछ भी लिखा गया है वह भावुकता के प्रवाह में नहीं लिखा गया अपितु आपश्री के जीवन दर्शन से सन्दर्भित कृतियों का अवलोकन कर आपके प्रवर्तमान २५०वीं पुण्य तिथि पर अपने भावसुमनों को अर्पण करने का लघु प्रयास है। शुभम् भवतु....!!
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