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गाहा :
अहवा न पुच-पुरिसेहिं ममं वंसे कयं इमं पावं । तमहंपि कह करोमी असार-रज्जरस कज्जेण ? ॥१९४।।
छाया:
अथवा न पूर्व-पुरुषैः मम वंशे कृतं इदं पापम् ।
तमहमपि कथं करोमि असार-राज्यस्य कार्येण || १९४।। अर्थ :- अथवा मारा वंशमां पूर्व-पुरुषो वड़े आवु पाप करायु नथी तो असार राज्यना कार्य माटे हुं पण केम करू ? हिन्दी अनुवाद :- अथवा मेरे वंश में पूर्व-पुरुषों ने ऐसा कोई पापाचरण नहीं किया है तो मैं भी ये असार-राज्य के लिए क्यों करूं? गाहा :
महिला-वयणेण इमो रागंधो कुणइ, कुणउ अन्नायं । मह पुण विवेय-जुत्तस्स हंदि ! न हु एरिसं जुत्तं ॥१९५॥
छाया:
महिला-वचनेन अयं रागान्धः करोति, करोतु अन्यायम् ।
मम पुन विवेक-युक्तस्य हंदि ! न खलु ईदृशं युक्तम् ।। १९५|| * अर्थ :- महिलाना वचनवड़े आ रागान्ध अन्याय करे छे, करवा दो, वळी विवेकयुक्त एवा मने आवा प्रकारचें करवा माटे योग्य नथी. हिन्दी अनुवाद :- महिला के वचन द्वारा यह रागान्ध अन्याय करता है, उसे करने दो, किन्तु विवेकवान् मुझे ऐसा करना उचित नहीं है। गाहा :
ता किं करेमि इण्डिं अवमाणं ताव दूसहं पिउणो।
अप्प-वहोवि न जुत्तो देस - च्चाओ परं जुत्तो ॥१९६।। । छाया:
तस्मात् किं करोमि इदानी अपमानं तावद् दुःसहं पितुः ।
आत्म-वधोऽपि न युक्तः देश-त्यागः परं युक्तः ||१९६|| अर्थ :- आ पिताजीना वडे अपमान दुःसह छे तो अत्यारे हुं शुं करू ? आत्मवध पण योग्य नथी, देश त्याग परं योग्य छे. हिन्दी अनुवाद :- पिताजी द्वारा किया गया यह अपमान दुःसह है, तो अभी क्या करूँ ? आत्म-वध भी योग्य नहीं है। देश त्याग ही परम मार्ग है। गाहा :
गंतूणमन्न देसं तम्हा सेवामि अन्न-नर-नाहं ।
हं तंपि ह नह जुत्तं अवमाण-पयं हि सेवत्ति ॥१९७।। छाया:
गत्वान्य देशं तस्मात् सेवे अन्य-नरनाथं । हुं तमपि खलु न तु युक्तं, अपमान-पदं हि सेवा इति ।।१९७।।
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