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________________ छाया: व्रजन्ति वासराणि मम पितुः तस्यां गाढ रक्तवतायां । शीथिलीकृत-शेषावरोध-रमणि-गमनादि चेष्टस्य ।।१७३।। अर्थ :- तेणी पर गाठ अनुरागी शेष अन्तःपुरनी रमणिओ पासे गमनादि चेष्टापण स्थगित करी दीघेल मारा पिताना केटलाक दीवसो पसार थाय छे. हिन्दी अनुवाद :- कनकवती पर अत्यधिक राग होने से शेष अन्तःपुर की रमणियों के पास जाना भी बंद करनेवाले मेरे पिताजी के कितने ही दिन बीत गये। सुरभ पुत्र जन्म गाहा: अह अन्नया कयाइवि कणगवईए सुओ समुप्पन्नो। सूरहोत्ति विहिय-नामो पत्तो सो कुमर-भावम्मि ॥१७४।। छाया: अथ अन्यदा कदाचिदपि कनकवत्याः सुतः समुत्पन्नः। सुरभ इति विहित-नाम प्राप्तः स कुमार-भावे ।।१७४|| अर्थ :- हवे कोईकवार कनकवतीने पुत्र उत्पन्न थयो. “सुरभ" ए प्रमाणे तेनु नाम राख्यु. अने ते 'सुरभ', कुमार भावने पाम्यो. हिन्दी अनुवाद :- कनकवती को पुत्र उत्पन्न हुआ और उनका "सुरभ" नाम रखा गया। अब वह सुरभ कुमारत्व को प्राप्त हुआ अर्थात् बड़ा हुआ। गाहा : अन्न-दियहम्मि एवं एगते भणइ कणगवई देवी। जुवराय-पए कि नवि अहिसिच्चइ देव ! मे पुत्तो? ॥१७५।। छाया: अन्य-दिने एतं एकान्ते भणति कनकवती देवी।। युवराज पदे किं नापि अभिसिच्यते देव! मम पुत्रः? || १७५।। अर्थ :- कनकवती देवी अन्यदिवसे एकान्तमा राजाने कहे छे. 'हे देव ! मारा पुत्र नो युवराज पद पर शुं अभिषेक न कराय' ? हिन्दी अनुवाद :- कनकवती देवी एक दिन एकान्त में राजा को कहती है - हे देव ! मेरे पुत्र का युवराज पद पर अभिषेक क्यों न किया जाये? मोटा पुत्र सुप्रतिष्ठना अवगणना गाहा : तो भणइ नर-वरिंदो जेट्टे पुत्तम्मि सुप्पइट्टम्मि । विजंते न हु जुत्तं जुवरायं ठाविउं सुरहं ॥१७६।। छाया: ततो भणति नर-वरेन्द्रः ज्येष्ठे पुत्र सुप्रतिष्ठे। विद्यन्ते न खलु युक्तं युवराजं स्थापयितुं सुरभम् ।। १७६।। 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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