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________________ गाहा: महिला-मेत्तस्स कए न ह जुत्तं तुम्ह उत्तम-नराण । असमंजसमायरित्रं विनाय-जग-स्सभावाणं ॥१३१॥ छाया: महिला-मात्रस्य कृते न खलु युक्तं युस्माकं उत्तम-नराणाम् । असमञ्जसमाचरितुं विज्ञात-जगत्-स्वभावम् ||१३१।। अर्थ :- जाण्या छे जगत् ना स्वभावने एवा तमारा जेवा उत्तम पुरुषोने स्त्रीमात्र माटे असमञ्जस आचरवानुं योग्य नथी. हिन्दी अनुवाद :- जगत् के स्वभाव को जानने वाले आप जैसे उत्तम पुरुषों को स्त्री मात्र के लिए ऐसा असमञ्जस आचरण ठीक नहीं है। गाहा :- अविय। निरुवक्कम • कायस्सवि उसभ-जिणिंदस्स आइ-देवस्स । मरणं जायं जइया का गणणा अन्न-मणुएसु ? ॥१३२।। छाया :- अपि च । निरूपक्रम - कायस्यापि ऋषभ-जिनेन्द्रस्यादि-देवस्य मरणं जातं यदि वा का गणना अन्य मनुजेषु? ||१३२|| अर्थ :- निरूपम कान्तिवाळा ऋषभ जिनेन्द्र आदिदेवनुं पण मृत्यु थयु छे. तो पछी अन्य सामान्य जननी तो कई गणना. हिन्दी अनुवाद :- निरूपम कान्तिवाले ऋषभ जिनेन्द्र आदिदेव की भी मृत्यु हुई है, तो फिर अन्य सामान्यजनों की क्या गिनती? गाहा : निज्जिय-पडिवक्खस्सवि छ-क्खंड-महीसरस्स भरहस्स । जइया जायं मरणं का गणणा अन्न-मणुएसु ? ॥१३३॥ छाया : निर्जित - प्रतिपक्षस्यापि षट्-खण्ड-महेश्वरस्य भरतस्य । यदि वा जातं मरणं का गणना अन्य-मनुजेषु ? ||१३३।। अर्थ :- जिन्या छे शत्रुना पण छट खण्ड एवा महेश्वर भरतनु पण मरण थयु तो पछी अन्य जनने विषे कई गणना ? हिन्दी अनुवाद :- शत्रु के सभी (छह) खण्डों को जीतनेवाले महेश्वर भरत की भी मृत्यु हुई है तो फिर अन्य जनों की क्या बात? गाहा : गरुय-परक्कम-निज्जिय-रिउ-बल-पाइक्क-चक्क-कय-रक्खा । सोंडीरा नर-वइणो सोमजसा-ऽऽइच्चजस-पमुहा ॥१३४॥ जह ताव ते य निहया पाव-कयंतेण निग्घिण-मणेण । अनिवारिय-पसरेणं का गणणा अन्न-लोयम्मि ? ॥१३५॥ ___ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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