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________________ छाया:____एवमादि यावत् विलपति विविधं राजा सकरूण-शब्देन । तावदहं सम्प्राप्तो दन् तत्र धनदेवः ! ।।१२४।। अर्थ :- आ प्रमाणे करुणशब्दवड़े राजा विलाप करता हता तेटलीवारमा रडतो एवो हुं हे धनदेव ! त्यां पहोंच्यो. हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार करुणशब्द से विलाप करते थे उसी समय रोता हुआ मैं, हे ! धनदेव ! वहाँ गया । गाहा : उच्छंगे विणिवेसिय ममं तओ गाढ-कलुण-सद्देण । तं चेव पलवमाणो सुदीहरं रुवइ बालोव्व ॥१२५॥ छाया : उत्सङ्गे, विनिवेश्य माम् ततो गाढ-करुण-शब्देन । स एव प्रलपमानः सुदीर्घ रोदिति बालेव व ।।१२५|| अर्थ :- मने खोलामा (गोद) बेसाडीने त्यारपछी अत्यंत करुण-शब्दवडे ते ज प्रलापोने करतो बालकनी जेम लांबाकाळ सुधी रडयो. हिन्दी अनुवाद :- मुझे गोद में बैठाकर अत्यंत करुण-शब्दों द्वारा उसी प्रलापों को बोलता, बालक की तरह लंबे काल तक रोया। मंत्री सलाह गाहा: एत्यंतरम्मि मंती समई-नामो भणइ नर-नाहं । देव ! अलं रुन्नेणं मय-किच्चं कुणह देवीए ॥१२६॥ छाया: अत्रान्तरे मन्त्री सुमति : नाम भणति नर-नाथम् | देव! अलं रुदितेन मृत - कृत्यं कुरुथ देव्याः ।।१२६।। अर्थ :- ए अरसामां सुमति नामनो मन्त्री राजाने आ प्रमाणे कहे छे, “हे देव ! रुदन वड़े सर्यु. हवे आ देवीनुं मृत कृत्य को !" हिन्दी अनुवाद :- उसी समय सुमति मन्त्री राजा को इस प्रकार कहता है। “हे देव ! रुदन से क्या? अब इस देवी का मृत कार्य कीजिए।" गाहा : भणइ तओ नर-नाहो चंदण-दारूणि वाहिं निणेह । देवीए जेण समयं अहंपि अग्गीए विस्सामि ॥१२७॥ छाया: भणति ततो नर · नाथः चन्दन - दारु - बहिः नाययत । देव्या येन समकं अहमप्यग्नौ विशामि ।।१२७।। 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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