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________________ अर्थ :- हा ! गौरवणीं ! हा! विस्तृत पयोधरवाळी, हे ! सुकोमल शरीरवाळी, अरे निर्दयी एवी विधातावड़े तारा उपर विजळी केम पडायी ? हिन्दी अनुवाद :- हे ! गौरवर्णी ! हा ! विस्तृत पयोधरवाली ! हे सुकोमलाङ्गी ! अरे ! निर्दयी विधाता द्वारा तेरे ऊपर बिजलीपात क्यों किया गया? गाहा :___ घणसार-घुसिण-चच्चण-उचिय-सरीरम्मि कह ण हय-विहिणा। विज्जू-निवाओ विहिओ मज्म अउन्नेहिं पावेण ? ॥११८॥ छाया : घनसार-घुसृण-चन्दनोचित-शरीरे कथं नु हत-विधिना । विधुनिपातो विहितो ममापुन्यै पपिन ? ||११८|| अर्थ :- कपूर, केसर, चन्दनने उचित तारा शरीर पर विजजीनो पात केम करायो? हणायेल भाग्यवाळा, निष्पुण्य एवा मारा पापवड़े विजळीनो पात करायो छे. हिन्दी अनुवाद :- कपूर, केसर और चन्दन से लेपित तेरे देह पर निर्भाग्य, निष्पुण्य ऐसे मेरे पाप द्वारा ही बिजली का पात किया गया है ! गाहा: हा देवि ! तुज्झ विरहे नर-नारी-संकुलं इमं नयरं । उव्वसिय-नयर-सरिसं अडवि-समाणं च पडिहाइ ॥११९।। छाया : हा देवि ! तव विरहे नर - नारी सकुलं इदं नगरम् । उद्वसित - नगर - सदृश - मटवि - समानं च प्रतिभाति ||११९।। अर्थ :- तेम ज हे देवि ! तारा विरहमां नर-नारी आकीर्ण एवु पण आ नगर उज्जड नगर समान अथवा जंगल जेवु लागे छे. हिन्दी अनुवाद :- उसी तरह हे देवि ! तेरे विरह में नर-नारी से व्याप्त यह नगर उजड़े हुए नगर-तुल्य अथवा जंगल जैसा लगता है। गाहा : किल देवि ! तं भणंती तह विरहे अच्छिउ न सक्केमि । तं कह अहं अहन्नो तुमए सहसा परिच्चत्तो ? ॥१२०॥ छाया :__किल देवि ! त्वं भणन्ती तव विरहे आसितुं न शक्नोमि । तत्कथ-महं अधन्यस्त्वया सहसा परित्यक्तः ।।१२०।। अर्थ :- हे देवी ! “हुं तमारा विरहमा जीववा माटे समर्थ नथी ए प्रमाणे बोलती", तो पछी अघन्य एवा मने एकदम ज तारावड़े केम छोडायो ? हिन्दी अनुवाद :- हे देवी ! मैं तुम्हारे विरह में जीने में समर्थ नहीं हूँ इस प्रकार तू बोलती थी, तो फिर मुझे सहसा तूने क्यों छोड़ दिया। 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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