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________________ गाहा : तह पेच्छ इमं सुंदरि ! सुणहं चुल्लीए सुन्न-गेहम्मि । सीएण कुणुकुणंतं खर-खर-खड्डु खणेमाणं ।।१०३।। छाया : तथा पश्य इमं सुन्दरि ! श्वानं चूल्लयां शून्य-गृहे । शीतेन कुणकुणायमानं खर - खर गर्त-खनतां ।। १०३।। अर्थ :- तथा हे सुन्दरि ! जो, शून्य-गृहमा चुल्लामां ठंडी थी कणशता खरखर खाड़ो खोदता कूतरा ने जो. हिन्दी अनुवाद :- तथा हे सुन्दरी शून्यगृह में चूल्हे में ठंडी से कांपते खट-खट गड्डा खोदते हुए इस कुत्ते को देख। गाहा : तह पेच्छ जर-बइल्ला जलहर-धारावलीहि हम्मंता । ईरिया-समिउव्व मुणी वच्चंति महिं पलोएंता ।।१०४।। छाया : तथा पश्य जरत्बलीवन जलधर-धारावलीभिः हन्यमानान् । ईर्यासमितेव मुनयः व्रजन्ति महिं प्रलोकयन्तः ।।१०४।। अर्थ :- तथा पळी मेघनी धारावड़े हणाता घरडा बळदोने जो, इर्यासमिति ने साचवता मुनिनी जेम पृथ्वीने जोता जइ रह्या छे. हिन्दी अनुवाद :- तथा मेघ की धारा से कम्पित वृद्ध बैलों को देख, ईर्यासमिति का पालन करते मुनि की तरह पृथ्वी को देख रहे हैं। गाहा : सेवालिय-भूमि-तले फिल्लुसमाणा य थाम-थामम्मि । हत्थ-गय-लट्ठि-खंडा भिक्खं परियडइ जर-रोरो ।।१०५।। छाया : शैवलित - भूमितले पतन्तः च स्थान-स्थाने । हस्त-गत - यष्टि - खन्डोः भिक्षार्थं पर्यटति जरत्कः ।।१०५|| अर्थ :- सेवाल जेवी लीली धरती पर स्थाने स्थाने पडता, हाथमा रहेली लाकडीना टेकावाळो घरडो भिखारी भिखमाटे फरे छे." हिन्दी अनुवाद :- सैवाल जैसी हरित धरती के स्थान-स्थान पर गिरते, हाथ में रही हुई लकड़ी के आलंबनवाले वृद्धभिक्षुक भिक्षा के लिए घूमते हैं।" गाहा : एवं च जाव साहइ देवीए ताव कुंचई झत्ति । पाय-वडणुट्ठिओ अह वसुदत्तो भणिउमाढत्तो ।।१०६।। छाया: एवं च यावत् कथयति देव्याः तावत् कञ्चुकी झटिति । पाद-पतनुत्थित अथ वसुदत्तः भणितुमारब्धः ।।१०६।। 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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