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________________ अर्थ :- पांच धाव माता वड़े लालन पालन करातो हुं क्रमथी वृद्धिने पामतो माता-पिताने आनंद आपतो पांच वरसनो थयो. हिन्दी अनुवाद :- पांच धाय माताओं से लालित, माता-पिता को आनंदित करता, क्रम से बढ़ता मैं पांच साल का हुआ। वर्षा वर्णन गाहा: एत्थंतरम्मि गिम्हे संताविय-महि-यले वइक्कंते । निव्वविय-मही-वीढो रसंत-सालूर-संघाओ ।।७४।। पवहंत-बहल-वाहिणी-खलहल-संसद्द-बहिरिय-दिगंतो । गज्जंत-गहिर-जलहर-दसण-नच्चंत-सिहि-निवहो ।।५।। पफ्फुल्ल-फुल्ल-सोहिय-नीवोह-विरायमाण-वण-नियरो । मुच-कुंद-कुडय-संदिय-रय-गभिण-वाइय-समीरो ॥७६।। पुलिण-पइट्ठिय-बालय-कय-वालुय-देउलेहिं रमणीओ। करिसय-जण-पारंभिय-हलउत्तय चच्चिय-बइल्लो ।।७७।। हरिस-वंस-हसिर-पामर दिसि-दिसिंचब्भत्त-भूरि-केयारो । पत्तो वासा-रत्तो कद्दम-दुल्लंघ-मग्गिल्लो ।।७।। छाया: अत्रान्तरे ग्रीष्मे . संतापित-महितले व्युत्क्रान्ते । निर्वापित-मही-पील: रसन्-सालूर-संघातः 11७४।। प्रवहन्-बहल-वाहिनि-खलखल-संशब्द-बधिरित-दिगंतः गर्जत-गभीर-जलधर-दर्शन-नृत्यत्-शिखि-निवहः ||७५।। प्रफुल्ल-पुष्प-शोभित-नीपौघ-विराजमान-वन-निकरः मुचुकुन्द-कुटज-स्यन्दित-रज-गर्भित-वात-समीरः 11७६11 पुलिन-प्रतिष्ठित-बालक-कृत-वालुका-देवकुलैः रमणीयः। . कर्षक-जन-प्रारम्भित-हलयुक्तः चर्चित-बलीवर्दाः ।।७।। हर्ष-वश-हसनशील-पामर दिशि दिशि च अभ्यक्त भूरिकेदारः। वर्षारात्रः कर्दम-दुर्लंघ-मार्गवान् ।।७८।। -पंचभिः कुलकम् अर्थ :- एटलीवारमा ग्रिष्म ऋतु पसार थये छते संतापित भूमंडल शीतल थयुं, चारे बाजु देडकाओ अवाज करवा लाग्या, वहेता प्रवाहना कलकल अवाजोथी दिशाओ बधिर बनी छे, तथा गर्जना करता गंभीर मेघना दर्शनथी नृत्यकरता मोरना समूहवाली, खीलेला पुष्पोथी शोभता कदम्बवृक्षनासमूहथी शोभता वनसमूह वाळी, मोगरा-चंपा आदि विविध पुष्पोनी सुगंधित रजयुक्त वहेता वायुवाली, किनारा पर रहेला बालको वड़े करेला रेतीना देवकुलो वड़े रमणीय, खेडुतजनथी प्रारम्भित हलयुक्त पूजायेला बलीवर्दो जेमां छे, हर्षने वश प्राप्तः 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525054
Book TitleSramana 2004 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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