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________________ जैन गुफाएँ : ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व * * डॉ० एन० के० शर्मा * श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६ जनवरी - जून २००४ प्राचीन काल से ही जैन मुनियों को नगर - ग्रामादि बहुजन संकीर्ण स्थानों से अलग पर्वत एवं वन की गुफाओं आदि में निवास करने का विधान किया गया है और ऐसा एकान्तवास जैन मुनियों की साधना का आवश्यक अंग बताया गया है। जहाँ जैन मुनियों का निवास स्थान होगा, वहाँ ध्यान एवं वन्दनादि के लिए जैन मूर्तियों की स्थापना अवश्य होगी। प्राचीन काल में शिलाओं पर आधारित प्राकृतिक गुफाओं का उपयोग किया जाता था। ऐसी गुफाएँ प्रायः पर्वतों की तलहटी में पायी जाती हैं, जिन्हें जैन परम्परा में मान्य अकृत्रिम चैत्यालय कहा जा सकता है। इन गुफाओं का विशेष संस्कार एवं विस्तार कृत्रिम साधनों से किया जाने लगा और जहाँ इसके योग्य शिलाएँ मिलीं, उनको काटकर गुफा - विहार एवं मन्दिर बनाए जाने लगे। ऐसी गुफाओं में सर्वाधिक प्राचीन गुफाएँ ' बराबर' और 'नागार्जुनी' पहाड़ियों में स्थित हैं। ये पहाड़ियाँ पटनागया रेलवे स्टेशन से ८ मील पूर्व की ओर हैं। बराबर पहाड़ी में चार तथा नागार्जुनी पहाड़ी में तीन गुफाएँ हैं । बराबर की गुफाएँ अशोक और नागार्जुनी की उसके पौत्र दशरथ द्वारा आजीवक मुनियों के लिए निर्मितं करायी गयी थीं । आजीवक सम्प्रदाय यद्यपि उस काल में एक पृथक् सम्प्रदाय था और ऐतिहासिक प्रमाणों से उसकी उत्पत्ति एवं विलय जैन सम्प्रदाय में ही सिद्ध होता है। जैन आगमों के अनुसार इस सम्प्रदाय के संस्थापक मंखलि गोशाल महावीर स्वामी के शिष्य रहे, किन्तु सैद्धान्तिक मतभेदों के कारण उन्होंने अपना अलग सम्प्रदाय स्थापित कर लिया। लेकिन यह सम्प्रदाय पृथक् रूप से दो-तीन शती तक ही चला और इस काल में आजीवक साधु जैन मुनियों के समान नग्न रहते थे और उनकी भिक्षादि-चर्या भी जैन निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के समान थी। अशोक के पश्चात् इस सम्प्रदाय का जैनधर्म में विलय हो गया और तब से इसकी पृथक् सत्ता का उल्लेख नहीं मिलता। आजीवक मुनियों को दान में दी गई गुफाओं का जैन ऐतिहासिक परम्परा में उल्लेख मिलता है। बराबर पहाड़ी की दो गुफाएँ अशोक ने अपने राज्य के १२ वें वर्ष में और तीसरा १९ वें वर्ष में निर्माण करवाया। लेखों में इन गुफाओं को आजीवकों को दान दिए जाने का स्पष्ट उल्लेख है। ये सभी गुफाएँ कठोर तेलिया पाषाण को काटकर बनाई गई हैं। ** (प्रस्तुत आलेख डॉ० हीरालाल जैन की पुस्तक भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान के चतुर्थ अध्याय " जैन कला" के अन्तर्गत "जैन गुफाएं" नामक अंश का संक्षिप्त रूप है। सम्पादक) * एसो० प्रोफेसर, इतिहास विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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