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________________ साधारण सिद्धसेनसूरि रचित 'विलासवईकहा' : ७९ स्थलों पर इसके माध्यम से नाटकीय दृश्यों की संयोजना भी सफल रूप में की है, जिससे पाठक के मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ उभरती हैं। वास्तव में इस प्रकार की विशेषताएँ बहुत कम काव्यों में दिखलाई पड़ती हैं। __काव्य में कवि का शब्द-विन्यास सुन्दर रूप में है और भाषा प्रांजल व सुबद्ध है। उसमें सूक्तियों, कहावतों एवं मुहावरों का सुन्दर प्रयोग हुआ है, जिनसे भाषा और भावों में सजीवता आ गई है। यह रचना काव्य कला की दृष्टि से अपभ्रंश के प्रेमाख्यानक-काव्यों में उत्कृष्ट है और कथानक रूढ़ियों के अध्ययन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से यह अत्यन्त सम्पन्न तथा प्रसाद गुण से युक्त काव्य है। यद्यपि प्राय: सभी रसों की संयोजना इस काव्य में हुई है, किंतु मुख्य रूप से विप्रलम्भ श्रृंगार का प्राधान्य है। अत: काव्य-कथा की विशेषताओं को देखते हुए यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि वास्तव में यह कवि अपनी इस सुंदर कृति द्वारा अमर हो गया है। सन्दर्भ : १. एक्कारसहिं सएहिं गएहिं तेवीस वरिस अहि गहिं। पोस चउद्दसि सोमे सिप्रा धधुंक्कय पुरम्भि।। 'धन्धुका' नाम का नगर गुजरात प्रदेश में अहमदाबाद के निकट है। इसी नगर में कलिकासर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्रसूरि तथा सुपासनाहचरिय के रचयिता मलधार-गच्छीय लक्ष्मणगणि जैसे विद्वानों का जन्म हुआ था। २. एसा य गणिज्जंति पाएणा णुट्ठभेण छदेण। संपुण्णाहं जाया छत्तीस सयाइं वीसाइं। ३. समराइच्चकहाउ उद्धरिया सुद्ध संधिबधेण। . कोऊहलेण एसा पसन्न कयणा विलास वई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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