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जैन दर्शन में निहित वैज्ञानिक तत्व : २९
के n पदों का योग निकालने के नियम दिये जो समकालीन ही नहीं अपितु उत्तरकालीन साहित्य में भी अनेक शताब्दियों तक अनुपलब्ध रहे।
नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती ने १४ विशिष्ट अवरोही अनुक्रमों (Divergent Sequences) के सुन्दर विवेचन प्रस्तुत किये हैं।
(११) बीजगणितीय समीकरणों के क्षेत्र में भी जैनाचार्यों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्राचीन जैन ग्रन्थों स्थानांगसूत्र आदि में समीकरणों के प्रकार आदि का उल्लेख मिलता है, बीजीय राशियों से सम्बद्ध महत्वपूर्ण सामग्री भी उपलब्ध है। भास्काराचार्य के उल्लेखानुसार श्रीधर (७९९ ई०) के अनुपलब्ध ग्रन्थ बीजगणित में द्विघात समीकरण ax'+bx+c = 0 को हल करने की आधुनिक रीति दी है -
चतुराहत वर्गसमैरूपैः पक्षद्वयं गुणयेत्। अव्यक्त वर्गरूपैर्युक्तो पक्षो ततो मूलम्।। यदि समी० axi+bx=c है, तो 4a(axi+bx)+b2=4ac+bi 4ax2+4abx=b+4ac-b+ (2ax+b)= +4ac --btVb' +4ac
x2a
महावीराचार्य ने तो एक घात, द्विघात, त्रिघात एवं बहुघात वाली एक अज्ञात राशि एवं अनेक अज्ञात राशि के समीकरणों युगपत् समीकरणों को हल करने की विधियाँ रोचक उदाहरणों सहित दी है। ... ज्यामिति में बीज गणित का अनुप्रयोग जैनाचार्यों का वैशिष्ट्य है। स्वेच्छापूर्वक चयनित सार्थक जन्य बीज राशियों से किसी समकोण की रचना, एक निश्चित भुजा वाले विभिन्न समकोण त्रिभुजों की रचना, निश्चित परिमाप अथवा क्षेत्रफल वाले अनेक समकोण त्रिभुजों की रचना, निश्चित क्षेत्रफल अथवा अनुपात के आयत युगलों की रचना के नियम दिये हैं। वस्तुत: एक निश्चित कर्ण माना c वाले विभिन्न समकोण त्रिभुजों की शेष दो भुजाओं के मापों के समूहों को ज्ञात करने हेतु जो तथाकथित Fibonacci Sequence प्रचलित है, वह १२०२ ई० में Fibonacci द्वारा पुन: अविष्कृत होने से पूर्व ८५० ई० में महावीराचार्य द्वारा प्रतिपादित हो चुका था।२५
c.[m-n]
c.[2mn]
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