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________________ उत्तरसरसंजुत्ता उत्तरआ उत्तरुत्तरा हुति। अहरेहिं उत्तरतमा अहरा अहरोहिं णायव्वा।।६।। उत्तर वर्ण उत्तर स्वर से संयक्त होने पर उत्तरोत्तर संज्ञक होते हैं। वे ही वर्ण अधराधर संज्ञक स्वरों से संयुक्त हो कर उत्तरतम संज्ञक बन जाते हैं। अधर वर्णों का अधर स्वरों से संयोग होने पर उन की संज्ञा जान लेनी चाहिये अर्थात् अधर वर्ण अधर स्वरों से संयुक्त होने पर अधराधर कहलाते हैं।।६।। अहरसरहिं जुत्ता ते दढ्डा हंति अहरअहरतमा। कज्जाइं साहति सुअ(इ)रं अधमा अधमाई कि बहुणा।।७।। अधर स्वर से संयुक्त दग्ध का अधराधरतम होते हैं। वे अति चिरकाल में अधमाधम कार्यों की सिद्धि करते हैं। अधिक क्या कहें।।७।। दढ्डसरेहिं जुत्ता दढ्डतमा हुति दढ्डया वण्णा। ते णासयंति कज्ज बलाबलं मीसयेसु सयलेसु।।८।। दग्ध स्वरों से संयुक्त दग्ध-संज्ञक वर्ण दग्धतम होते हैं। वे कार्य को नष्ट करते हैं। सब प्रकार के वर्गों के मिश्रित होने पर बलाबल के अनुसार फल होता है। (अर्थात् जिस प्रकार के अक्षरों की संख्या अधिक होगी फल उसी के अनुसार होगा।)॥८॥ आलिंगिएहिं पुरिसो महिला अहिथूमिएहिं सब्बेहिं। दढ्डेहिं होइ संढो जाणिज्जइ पण्हपडिएहि।।९।। प्रश्न में पड़े हुए आलिंगित अक्षरों से पुरुष, सभी अभिधूमिताक्षरों से महिला और दग्धाक्षरों से नपुंसक होता है - यह जान लिया जाता है।।९।। जइ वग्गाण य वण्णा पढम-बीय-तीय-चउत्थ-पंचमया। तह विप्प-राय- वयसा सुद्दो विय संकरा य सयलाई।।१०।। यदि व्यञ्जन वर्गों के प्रश्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पंचम वर्ण हों तो उनसे क्रमश: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और सभी संकर जातियों का ज्ञान होता है।।१०।। एदेहिं वण्णेहिं कमेण बालो कुमारओं तरुणो। मज्झिमवयो वि थविरो जाणिज्जइ पण्हपडिएहि।।११।। यदि प्रश्न के वाक्य में ये ही वर्ण आये हों, तो क्रमश: बालक, कुमार, तरुण, मध्यमवय और वृद्ध को भी जान लिया जाता है।॥११॥ आलिंगिएहिं विट्ठी मज्झ अहिधूमिएहिं सा होइ। दड्डेहिं णत्थि विट्ठी जिणवयणं सच्चियं जाण।।१२।। आलिंगित अक्षरों से वृष्टि है, अभिधूमिताक्षरों से मध्यम वृष्टि है और दग्धाक्षरों से वृष्टि नहीं है - यह ज्ञान होता है। जिन वचन सत्य समझो।।१२।। अइउप्पज्जइ सस्सं पण्हे आलिंगिएहिं वण्णेहि। अहिधूमिएहिं किंचण णासइ दड्डेहिं णो चित्तं।।१३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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