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________________ छाया : कः शक्नोति कुशलोऽपि खलु यथास्थितं तस्या राजकन्यायाः। निर्जित-त्रिदश-विलासिनी-रूपं रूपं समालिखितुम् ||१६२॥ अर्थ :- गमे तेवो कुशल पण चित्रकार, जीती छे देवलोकनी देवीओना रूपाने जेणे एवी तेणीनां (राजकन्याना) वास्तविक चित्रने चितरवा माटे कोण समर्थ बने ?" हिन्दी अनुवाद :- "कितना भी कुशल चित्रकार हो, किन्तु जिसने देवलोक के देवियों का भी रूप विनिर्जित किया है ऐसी इस राजकन्या का चित्र बनाने में कौन समर्थ बनेगा?" गाहा: राजा द्वारा चित्रकारने भेट तव्वयणं सोऊणं हरिसिय-हियएण राइणा तस्स । अंग-विलग्गमसेसं पसाइयं कडय-वस्थाई ।।१६३।। छाया: तद्-वचनं श्रुत्वा हर्षित-हृदयेन राज्ञा तस्य । अङ्ग-विलग्नमशेषं, प्रसादितं कटक-वस्त्राणि ||१६३॥ अर्थ :- ते वचन सांभळीने हर्षित हृदयवाळा राजा तेने पोताना शरीर ऊपर रहेला समस्त आभूषणो अने वस्त्र विगेरे भेट आप्या। हिन्दी अनुवाद :- यह वचन सुनकर हर्षित चित्तवाले राजा ने शरीर के समस्त आभूषण और वस्त्रादि भेंट में दिये। गाहा : तो भणइ चित्तसेणो आएसं देह देव! अम्हाणं । नरवाहणस्स रण्णो जहट्ठियं जेण साहेमो ।।१६४।। छाया: ततो भणति चित्रसेन आदेशं दत्त देव ! अस्मभ्यम् । नरवाहनाय राजे यथास्थितं येन कथयामः ॥१६४॥ अर्थ :- त्याटे चित्रसेन कहे छे - “हे देव ! आप अमने आदेश आपो तो अमे नरवाहन राजाने यथास्थित बनेली हकीकत कहीए !" हिन्दी अनुवाद :- तब चित्रसेन कहता है - "हे देव ! आप मुझे आदेश प्रदान कीजिये, जिससे मैं राजा नरवाहन को यथास्थित कहूँ।" गाहा : नरवाहन राजाने समाचार प्रदान रण्णण्णुनाओ सो कमेण पत्तो कुसग्गनयरम्मि । नरवाहणस्स रन्नो सिट्टो सव्वोवि वुत्तंतो ।।१६५।। छाया : रामानुजातः स क्रमेण प्राप्तः कुशाग्रनगरम् । नरवाहनाय राक्षे शिष्टः सर्वोऽपि वृत्तान्तः ।।१६५॥ अर्थ :- राजा बड़े अनुज्ञा पामेला ते चित्रकार क्रम वड़े कुशाग्र नगरमां आव्यो अने नरवाहन राजाने तेणे बधो ज वृत्तांत कह्यो ! 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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