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________________ छाया: एवं राज्ञा भणितस्ततः प्रणम्य तस्य पद-कमलम् । कतिपय-परिजन-सहितः कुशाग्रनगरात् निःसृतः ।।१५५॥ अर्थ :- आ प्रमाणे राजा द्वारा कहेवायेलो हुं तेमना चरण कमलने प्रणाम करीने केटलाक परिजनो सहित कुशाग्र नगरथी नीकळयो। हिन्दी अनुवाद :- "इस प्रकार राजा से आदेश पर मैं उनके चरण-कमल को प्रणाम करके कितने ही परिजन सहित कुशाग्रपुर से निकला।" गाहा: सुग्गीव-कित्तिवद्धण-पमुहाणं नरवईण मे एसा । संदंसिया उ, न पुणो जाया इह अत्थ-संसिद्धी ।।१५६।। छाया : सुग्रीव-कीर्तिवर्द्धन-प्रमुखेभ्यो नरपतिभ्यो मया एषा । संदर्शिता तु न पुनर्जाता इहार्थ-संसिद्धिः ॥१५६॥ अर्थ :- सुग्रीव, कीर्तिवर्धन आदि श्रेष्ठ राजाओने में आ चित्र बताव्युं पण कार्यनी सिद्धि थइ नहि। हिन्दी अनुवाद :- सुग्रीव, कीर्तिवर्धन आदि श्रेष्ठ राजाओं को मैंने यह चित्र दिखलाया किन्तु कार्य फलित नहीं बना। गाहा : चित्रकारनी सिद्धि . . अज्ज पुणो इह नयरे समागओ देव ! तुम्ह पासम्मि । एयं नियच्छिऊणं मुच्छा जाया य तुम्हाणं ।।१५७।। छाया:__ अघ पुनरिह नगरं समागतो देव! तव पावें । एतद् दृष्ट्वा मूर्छा जाता च तव ||१५७|| अर्थ :- हे देव ! आजे आ नगरमां हुं तमारी पासे आव्यो अने आ चित्र जोईने आपने मूर्छा आवी। हिन्दी अनुवाद :- “हे देव ! आज इस नगर में मैं आपके पास आया और आपको इस चित्र देखकर मूर्छा आयी।" गाहा : जायं मह सामि-समीहियं ति चिंतित्तु तेण नर-नाह ! । जाओ हरिसो मझं सुमरिय नेमित्तियं वयणं ।।१५८॥ छाया: जातं मम स्वामि-समीहितमिति चिन्तयित्वा तेन नर-नाथ। जातो हर्षो मम स्मृत्वा नैमित्तिकं वचनम् ||१५८॥ अर्थ :- हे नरनाथ ! मारा स्वामीजीनुं इच्छित आजे पूर्ण थयु ते विचारीने अने ज्योतिषीनुं वचन याद करीने मने हर्ष थयो। 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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