SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी अनुवाद :- मुझसे अपनी बहन ऐसे-वैसे राजा को नहीं दी जा सकती, जिनको भी दी जाय उन्हें अच्छी तरह दी गयी कहा जाना चाहिए। गाहा : एवं च जाव जंपइ राया मइसागरेण सह तत्थ । ताव य दुवारपालो पणाम-पच्चुट्टिओ भणइ ।।१३४।। छाया: एवं च यावज्जल्पति राजा मतिसागरेण सह तत्र । तावच्च द्वारपालः प्रणाम-प्रत्युत्थितो भणति ||१३४॥ अर्थ :- आ प्रमाणे राजा मतिसागर मन्त्रीनी साथे बात करे छे एटलीवारमा द्वारपाल प्रणाम पूर्वक उभेलो कहे छ। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार राजा-मतिसागर मन्त्री के साथ बात करता है, उतनी ही देर में द्वारपाल प्रणाम पूर्वक खड़े खड़े कहता है। गाहा: नैमित्तक, आगमन ___ अटुंग-निमित्त-विऊ भूय-भविस्सत्थ-पयडण-पडिट्टो । सुमई-नामो इहइं समागओ देव! नेमित्ती ।।१३५।। छाया: अष्टांग-निमित्त-विदर्भत-भविष्यदर्थ-प्रकटन-पटिष्ठः । सुमति-नाम इह समागतो देव ! नैमित्तः ॥१३५॥ अर्थ :-हे देव ! अष्टांग निमित्तने जाणनार भूत, भविष्यना अर्थ प्रकट करवामां चतुर, सुमति नामनो निमित्तियो आव्यो छे। हिन्दी अनुवाद :- “हे देव ! अष्टांग निमित्त का ज्ञाता भूत, भविष्य के अर्थ कहने में चतुर, सुमति नाम का नैमित्तिक आया है। गाहा : सो देव-दंसणत्थं दुवार-देसम्मि चिट्ठइ इयाणिं । इय सोउं नर-वइणा भणियं तुरियं पवेसेहिं ॥१३६।। छाया: स देव-दर्शनार्थ द्वार-देशे तिष्ठतीदानीम् । इति श्रुत्वा नरपतिना भणितं त्वरितं प्रवेशय ।।१३६।। अर्थ :- ते आप पूज्यना दर्शन माटे बारणा पासे हमणां उभो छ। आ वात सांभळीने राजा वड़े कहेवायु, “तेने जल्दी अंदर मोकल।" हिन्दी अनुवाद :- वह आप के दर्शन के लिए द्वार पर अभी खड़ा है, इस बात सुनकर राजा ने कहा, "उनको जल्दी अंदर भेजो।" गाहा : तयणंतरं च समई निम्मल-सिय-वसण-सोहिय-सरीरो । गोरोयण-कय-तिलओ समागओ राइणो पुरओ ।।१३७।। 40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy