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________________ गाहा : स्वयंवर अंगे मन्त्रीनी सलाह मइसागरेण भणियं जं देवो आणवेइ तं किच्चं । नवरि सयंवर-करणं संपइ उचियं न काउं जे ।।१२७।। छाया: गतिसागरेण भणितं यद् देव आज्ञापयति तत् कृत्यम् । केवलं स्वयंवर करणं सम्प्रत्युचितां न कर्तुम् ।।१२७॥ अर्थ :- गतिसागर मंत्रीए कहयुं के आप जे आज्ञा करो छो तेज कर जोइप परंतु हगणां वर्तमान काळगां स्वयंवर करवो उचित नथी। हिन्दी अनुवाद :- मतिसागर मंत्री ने कहा कि आप जो आज्ञा करते हो वही करना चाहिए किन्तु अभी वर्तमानकाल में स्वयंवर करना उचित नहीं है। गाहा : सव्वेवि निवा जइया आयत्ता होति एग-नरवइणो । तदणुनाएण तया सयंवरो होइ कायव्वो ।।१२८।। छाया: सर्वेऽपि नृपा यदा आयत्ता भवन्ति एक-नरपतेः । तदनुज्ञातेन तदा स्वयंवरो भवति कर्तव्यः ।।१२८॥ अर्थ :- जो बधा राजाओ एक राजाने आधीन होय तो तेनी अनुज्ञाथी स्वयंवर करवानो होय छे। हिन्दी अनुवाद :- यदि सभी राजा एक राजा के आधीन रहें तो उनकी अनुज्ञा से स्वयंवर का आयोजन होता है। गाहा : एगस्स जओ वरणे सेसाणं सो निवारगो होइ । संपइ पुण रायाणो नरिंद! सव्वेवि अहमिंदा ।।१२९।। छाया: एकस्य यतो वरणे शेषाणां स निवारको भवति । सम्प्रति पुना राजानो नरेन्द्र ! सर्वेऽपि अहमिन्द्राः ||१२९॥ अर्थ :- कारण के ज्यारे राजकुमारी एकनी साथे लग्न करे त्यारे ते बीजा बधाराजाओने शांत राखी शके परंतु हे ! राजन् हमणा तो बधा राजाओ अहमिन्द्रो छ। हिन्दी अनुवाद :- क्योंकि जब राजकुमारी एक के साथ विवाह करेंगी तब दूसरे सारे राजाओं को शांत कर सकते, किन्तु हे राजन् ! अभी तो सभी राजा अहमिन्द्र हैं। गाहा : ता ताणमेग-वरणे सेसा सव्वेवि सत्तुणो होति । न य सक्का संगामे जिणि सव्वेवि एगेण ।।१३०।। 38 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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