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________________ हिन्दी अनुवाद :- श्रीकान्ता के साथ विविध क्रीडा में रत स्नेहयुक्त राजपुत्री का बहुत समय बीत गया। गाहा : छाया : कमलावतीना यौवननो प्रारंभ अह अन्नया कमसो वढतीओ तियसाण वि पत्थणिज्ज - रूवाओ । पत्ताओ पढम-जोव्वणमणंग सिंगार - आवासं ।। ११९ ।। य राया मइसागर - सागरेहिं संजुत्तो । अत्थाण- मंडवम्मी आसीणो अच्छाई निय सहि यण-संजुत्ता ताव य कमलावई तहिं आया । भूसण- पसाहिअंगी - कीलाए जाव ॥१२०॥ कीलंती ।। १२१ ॥ क्रमशो वर्धमाने • प्राप्ते अथान्यदा च राजा मतिसागर-सागराभ्यां संयुक्तः । आस्थान - मण्डपे आसीन आस्ते निज - सखि - जनसंयुक्ता तावच्च कमलावती भूषण - प्रसाधिताङ्गी कन्दुक - क्रीडया प्रार्थनीय-रूपे । त्रिदशानामपि प्रथम-यौवनमनंग - शृंगारावासम् ||११९ ॥ छाया : अर्थ :- क्रमशः वधती, देवोने पण प्रार्थनीय रूपवाळी (कमलावती) कामदेवना शृंगारना आवास रूप प्रथम यौवनने प्राप्त थये छते हवे कोइ वखत राजा, मन्त्री मतिसागर अने सागर शेठनी साथै सभामां बेडेलो हतो त्यारे आभूषणथी सुशोभित देहवाळी, दडानी क्रीडा वडे रमती कमलावती पोताना सखी समुदाय साथे त्यां आवी । हिन्दी अनुवाद :- क्रमशः बढ़ती देवों को भी प्रार्थनीय रूपवती (कमलावती) कामदेव के श्रृंगार के आवास समान प्रथम यौवन को प्राप्त हुई। एकदा राजा, मन्त्री मतिसागर और सागर सेठ के साथ सभा में बैठे थे। तब आभूषण से सुशोभित देहवाली, गेंद की क्रीडा से खेलती कमलावती अपने सखी समुदाय के साथ वहाँ आयी । गाहा : युवती कमलावतीने जोइने पिताना वचननी याद अह सा भगिणी रन्ना पीईए निवेसिया निउच्छंगे । तत्तो दु तीए रूवं तह जोव्वणमुदग्गं ।। १२२ ।। भणिओ रन्ना मंती मइसागर ! तइय पव्वयंतेण । ताएण अहं भणिओ भगिणी ठाणम्मि दायव्वा ।।१२३॥ Jain Education International यावत् ॥१२०॥ तत्रायाना । क्रीडन्ती ॥१२१॥ -श्रीभिर्विशेषकम् अथ सा भगिनी राजा प्रीत्या निवेशिता निजोत्सङ्गे । ततो दृष्टवा तस्या रूपं तथा भणितो राज्ञा मन्त्री तानेनाऽहं भणितो मतिसागर ! तदा भगिनी स्थाने - 36 For Private & Personal Use Only यौवनमुदग्रम् ॥ १२२ ॥ प्रव्रजता । दातव्या || १२३॥ - युग्मम् www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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