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________________ हिन्दी अनुवाद :- विषयसुख की पिपासा से रहित, संसार का छेद करने की इच्छावाले, सूत्र और अर्थ में विशारद उपाध्याय भगवन्तों को मैं निरंतर वन्दना करता हूँ। साधु भगवंतने वन्दना गाहा : पंच- महव्वय दुव्वह- पव्वय उव्वहण-पच्चले सिरसा । घर-वास-पास-मुक्के साहू सव्वे छाया : छाया : पंचमहाव्रतदुर्वहपर्वतोद्वहन- प्रत्यलान्' शिरसा | गृहवासपाशमुक्तान् साधून् सर्वान् नमस्यामि ॥१४॥ अर्थ :- दुःखेथी वहनकरी शकाय तेवा पांच महाव्रतो रूपी पर्वतने वहन करवामां समर्थ तथा गृहवासना पासथी मुक्त सर्व साधुभगवंतो ने हुं नमस्कार करूं छु । हिन्दी अनुवाद :- अति कष्ट से वहन करने योग्य पर्वत तुल्य पांच महाव्रतों को वहन करने में समर्थ तथा गृहवास के पास से मुक्त सर्व साधु भगवंतों को मैं नमस्कार करता हूँ। सरस्वती देवी स्तुति गाहा : - छाया : जीए कम-कमलं पाविऊण पाविंति पाणिणो परमं । नाणं अन्नाणा वि हु सा जयइ सरस्साई देवी ।। १५ ।। यस्याः क्रमकमलं प्राप्य प्राप्नुवन्ति प्राणिनः परमम् । ज्ञानमनानिनोऽपि खलु सा जयति सरस्वती देवी ||१५|| अर्थ :- जेना चरण कमलने प्राप्त करीने अज्ञानी जीवो पण परम ज्ञान ने प्राप्त करे छे ते सरस्वती देवी जय पाने छे । हिन्दी अनुवाद :- जिनके चरण कमलको प्राप्त करके अज्ञानी जीव भी परम ज्ञान को प्राप्त करते हैं वह सरस्वती देवी जय प्राप्त करती हैं। गाहा : नम॑सामि ||१४| गुरु भगवन्त वन्दना अने ग्रन्थ नामोल्लेख जाण पसाएण पुण मएवि जड- बुद्धिणा कहा करणे । लीलाए पयट्टिज्जइ, विसेसओ ते गुरू वंदे ||१६|| Jain Education International येषां प्रसादेन पुनर्मयापि जडबुद्ध्या कथाकरणे । लीलया प्रवृत्यते विशेषतस्तान् गुरून् वन्दे ॥ १६ ॥ अर्थ :- जेमना प्रसादथी जड़ बुद्धि एवा मारा बड़े पण कथा करवानां कार्यमां लीलाधी प्रयत्न कराय छे ते गुरुभगवंतोने विशेषथी हुं वंदन करूं छु। हिन्दी अनुवाद :- जिनकी कृपा से जड़ बुद्धि वाले मुझ जैसे भी कथा करने के कार्य में लीला (क्रीडा) से प्रयत्न होता है-वैसे गुरु भगवंतों को विशेष रूप से मैं वन्दना करता हूँ। १. समर्थान् 5 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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