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________________ श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६] जनवरी-जून २००४ जैन जगत् कर्मयोगी हजारीमल जी बांठिया का महाप्रयाण सफल उद्योगपति, कुशल व्यापारी, विख्यात् समाजसेवी, साहित्य-रसिक, पुरातत्त्व प्रेमी, लोकप्रिय जननेता, सर्वधर्मसमभाव के जीवन्त प्रतीक और राजस्थानी समाज के अप्रितम व्यक्तित्व हजारीमलजी बांठिया का ८० वर्ष की आयु में कम्पिल के निकट हृदयाघात से निधन हो गया। आपका अंतिम संस्कार १६ फरवरी को वहीं कम्पिल स्थित अहिंसा कीर्ति स्तम्भ परिसर में सम्पन्न हुआ। आपके परिवार में आपकी पत्नी, चार पुत्र और दो पुत्रियां हैं। बीकानेर (राजस्थान) में २४ सितम्बर १९२४ ई० को जन्मे बांठिया जी की रुचि बाल्यकाल से ही सामाजिक और साहित्यिक कार्यों की ओर थी। इसमें उन्हें अपने निकटतम सम्बन्धी स्वनामधन्य अगरचन्दजी नाहटा और भंवरलाल जी नाहटा से निरन्तर प्रेरणा मिलती रही। एक सामान्य गृहस्थ के रूप में अपना जीवन प्रारम्भ कर बांठिया जी उन्नति के शिखर पर पहुंचे जहां उन्हें विकास पुरुष के रूप में जाना गया। अपने व्यवहार कौशल, व्यापारिक निपुणता और मानवीय सद्गुणों के बल पर आपने समाज के समक्ष एक उच्च आदर्श उपस्थित किया। साहित्य के प्रति अगाध निष्ठा और इतिहास व प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी विशिष्ट रुचि के कारण बांठिया जी ने १९७८ में काम्पिल्य महोत्सव का आयोजन कर उसके प्राचीन गौरव की ओर विद्वानों एवं जनमानस का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने पंचाल शोध संस्थान की स्थापना कर देश के प्रमुख इतिहासज्ञों को इससे जोड़ा। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ प्रो० कृष्णदत्त बाजपेयी ने आजीवन इस संस्थान के अध्यक्ष की भूमिका निभाई। इस संस्थान द्वारा प्रकाशित होने वाली पत्रिका पंचाल का प्रत्येक अंक अपने आप में अपूर्व रहा है। देश-विदेश के विद्वानों ने इसमें प्रकाशित आलेखों की प्रशंसा की है। व्यतिगत सम्बन्धों के कारण बांठिया जी ने देश के प्रमुख विद्वानों को उक्त संस्था से जोड़ा एवं साथ ही साथ इस क्षेत्र में छात्रों को निरन्तर प्रोत्साहन और सभी प्रकार से सहयोग प्रदान कर उन्हें एक प्रतिष्ठित विद्वान् बनाने में अपना अपूर्व योगदान दिया। बांठिया जी देश की अनेक सामाजिक, साहित्यिक और धार्मिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े रहे। सुप्रसिद्ध भाषाविद्, इटली निवासी डॉ० एल०पी० टेस्सीटोरी और जैन साहित्य विशारदा जर्मन विदुषी डॉ० शालोटे क्राउज़े के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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