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________________ श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६ जनवरी-जन २००४ विद्यापीठ के प्रांगण में %3 - - पाण्डुलिपियों के परिरक्षण एवं संरक्षण विषयक कार्यशाला सम्पन्न __पार्श्वनाथ विद्यापीठ में राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives) भारत सरकार नई दिल्ली के सहयोग से पांचदिवसीय पाण्डुलिपि परिरक्षण एवं संरक्षण विषयक कार्यशाला २२ फरवरी से प्रारम्भ हुई। कार्यशाला के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए महात्मागांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो० सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि पाण्डुलिपियों के माध्यम से ही समाज की पहचान और उसके अतीत को रेखांकित किया जा सकता है। तत्कालीन समाज के विविध आयामों से पाण्डुलिपियां ही परिचित कराती हैं। विविध विषयों के विशेषज्ञों को मिल कर प्राचीन ज्ञान धरोहरों को उनके मौलिक रूप में संरक्षित करने के लिये कदम उठाना चाहिए। इस अवसर पर राष्ट्रीय अभिलेखागार की वैज्ञानिक अधिकारी डॉ० यशोधरा जोशी; सहायक रसायन अधिकारी डॉ० सुतापा चक्रवर्ती, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो० ज्योर्ति मित्रा; शिलांग विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो० जे०पी० सिंह; कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रमुख प्रो० सुदर्शनलाल जैन और विश्व संस्कृत प्रतिष्ठानम् की अध्यक्षा महाराजकुमारी कृष्णप्रिया ने विचार व्यक्त किये। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रो० महेश्वरी प्रसाद ने आगन्तुक अतिथियों एवं कार्यशाला में भाग ले रहे प्रशिक्षुओं का स्वागत करते हुए पाण्डुलिपियों के महत्त्व पर प्रकाश डाला। पांच दिन चली इस कार्यशाला में वाराणसी, गोरखपुर एवं आस-पास के ५० प्रशिक्षओं ने भाग लिया। २६ फरवरी को कार्यशाला के समापन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश श्री गणेशदत्त दुबे ने मुख्य अतिथि के पद से बोलते हुए कहा कि पाण्डुलिपियों के कारण हम अतीत के हर पहलू से जुड़े हुए हैं। अभिलेख, ताम्रपत्र, भोजपत्र आदि अपनेअपने समय के सामाजिक, राजनैतिक व धार्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं। इस लिये इनका संरक्षण आवश्यक है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो० अमरनाथ पाण्डेय ने कहा कि मैक्समूलर ने वेदों का सम्पादन करने से पूर्व पांच वर्ष तक केवल पाण्डुलिपियों का संग्रह किया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रो० महेश्वरी प्रसाद ने पांच दिन तक चले प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संक्षिप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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