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________________ त्रस - स्थावर का विभाग : ७ गति एवं लब्धि त्रस विचार करने से प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में केवल गति के आधार पर त्रस और स्थावर का विभाग किया गया होगा। इसी कारण अग्नि और वायु को त्रस कहा गया है किंतु एक चींटी की गति एवं वायु की गति एक जैसी नहीं होती। चींटी की गति इच्छाप्रेरित है। वह अपने हित के संपादन एवं अहित की निवृत्ति के लिए गति करती है जबकि अग्नि एवं वाय की गति में ऐच्छिक प्रेरणा नहीं है, वे स्वभावत: ही गतिशील हैं। मात्र गति के आधार पर विकसित-अविकसित को एक जैसा कैसे माना जा सकता है? जब इस तथ्य की ओर ध्यान गया होगा तब कर्मसिद्धांत के आधार पर त्रस और स्थावर की व्यवस्था हुई। जिसके स्थावर नामकर्म का उदय है वे स्थावर हैं भले ही वे गतिशील क्यों न हों तथा जिनके वसनामकर्म का उदय है वे त्रस हैं। आगमों में जब अग्नि और वायु को बस कह दिया गया तब उस वक्तव्य की समीचीनता लब्धित्रस एवं गतित्रस के आधार पर प्रस्तुत की गयी। आगमिक वक्तव्यों की तर्कसंगत व्याख्या के लिए गतित्रस एवं लब्धित्रस जैसा विभाग करना आवश्यक था और यह विभाग जनसाधारण के लिए बुद्धिगम्य भी है। एकेन्द्रिय-स्थावर अन्य त्रस ___ वर्तमान में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं में पृथ्वी, अप, तेजस, वायु एवं वनस्पति के जीव स्थावरकाय के रूप में एवं द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय,चरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जीव त्रसकाय के रूप में एकस्वर से स्वीकृत हैं। श्वेताम्बर परम्परा में सर्वप्रथम पृथ्वी आदि पांचों प्रकार के जीवों को एक साथ स्थावर किसने कहा है यह अन्वेषणीय है। स्थानांग, उत्तराध्ययन की टीका आदि में तो इन पांचों को स्थावर कहा गया है। सन्दर्भ : १. (क) आयारो, १/११८, से बेमि-संतिमे तसा पाण, तं जहा-अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भिया ओववाइया। (ख) दसवेआलियं, ४/९. २. आचारांगवृत्ति, पत्र - ६२, * अण्डज-अण्डों से उत्पन्न होने वाले मयूर आदि। * पोतज - पोत का अर्थ है शिशु। जो शिशुरूप में उत्पन्न होते हैं, जिन पर कोई आवरण लिपटा हुआ नहीं हो तो वे पोतज कहलाते हैं। जैसे - हाथी आदि। * जरायुज - जरायु का अर्थ गर्भ-वेष्टन या वह झिल्ली है, जो शिशु को आवृत किये रहती है। जन्म के समय में जो जराय-वेष्टित दशा में उत्पन्न होते हैं, वे जरायुज हैं। भैंस, गाय आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary:org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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