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________________ १०६ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १ - - ६ / जनवरी - जून २००४ प्रत्येक देह में भिन्न-भिन्न चेतन नहीं है ( ' एको देवः सर्वभूतेषु गूढ़ : ' इस श्रुतिरूप प्रमाण से सब देहों में एक ही चेतन है) वह एक चेतन यदि मर जाय तो समष्टि और व्यष्टि का चित्त, जिसकी सत्ता और स्फूर्ति उसी के अधीन है, कैसे नहीं मरेगा? अर्थात् अवश्य ही मर जायेगा। आशय यह है कि सम्पूर्ण विश्व वासना का वैचित्र्य है, उससे अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, अतः किसी जीव की वास्तविक मृत्यु नहीं होती है और न जन्म होता है वह केवल अपनी वासना के अनुरूप अपने कतिपय गर्त में पुन: पुन: लुण्ठित होता है । २० वैराग्य आदि साधनों से सम्पन्न अधिकारी जीव गुरुमुख से श्रवण आदि के अभ्यास से भ्रमवश प्रतीत हो रहे जगत्-प्रपञ्च को, यह परमार्थरूप से उदित नहीं हुआ है, यह तत्त्वज्ञान से देखकर अज्ञान के हटने से सर्वथा द्वैत - वासना से शून्य हो विमुक्त हो जाता है । विमुक्त आत्मस्वरूप ही यहाँ परमार्थ वस्तु है, उससे अतिरिक्त कल्पित है | शरीर, प्राण, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त इनमें कोई भी पुरुष नहीं है, ये सभी जड़ हैं। ये पदार्थ का प्रकाश नहीं करते हैं और न स्वयं भोग का अनुभव ही करते हैं, शरीर में चेतना ही पुरुष है, चैतन्य ही सर्वसाक्षी है। चेतन मरता है - इस सिद्धान्त का कोई साक्षी नहीं है। चेतना सम्बद्ध शरीर का मरण ही साक्षी सिद्ध है। चेतना की मृत्यु का कोई साक्षी नहीं है। क्या कभी किसी ने चेतना को मरते देखा है, विनाश ही तो मरण है, देहान्तर की प्राप्ति मरण नहीं है। चेतना का स्वतः विनाश और दूसरे से विनाश ये दोनों ही असंगत हैं। देहान्तर की प्राप्ति चेतना के अमरत्व के बिना असम्भव है। प्रत्येक शरीर में चेतना विभिन्न है, इसमें प्रमाण न होने से श्रौत प्रमाण से एक चैतन्य पक्ष ही प्रामाणिक है। चैतन्य का मरण मानने पर एक के मरने पर सभी के मरण की आपत्ति होगी, क्योंकि, एक के मरने पर सर्वमरण निष्पन्न नहीं होता है। अतः आत्मा का मरण नहीं हो सकता है, देहादि का ही मरण होता है, पुरुष का मरण कल्पना मात्र है । २१ यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि समाधिमरण एवं आत्महत्या दोनों में ही स्वेच्छापूर्वक देहत्याग किया जाता है किन्तु समाधिमरण एवं आत्महत्या में अन्तर है। समाधिमरण में जहाँ व्यक्ति मन की सांवेगिक अवस्थाओं से पूरी तरह से मुक्त होकर समभावपूर्वक मृत्यु का वरण करता है वहीं आत्महत्या व्यक्ति अपनी समस्याओं से ऊबकर मन की सांवेगिक अवस्था से ग्रसित होकर करता है। आत्महत्या एक असामान्य व्यक्ति की मनोदशा का परिचायक है। सामान्य अवस्था में व्यक्ति देहत्याग के विषय में बात करना भी पसन्द नहीं करता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में वह देहत्याग कर देता है । आत्महत्या करते वक्त व्यक्ति उत्तेजना की चरम सीमा को पारकर जाता है, क्योंकि ऐसा नहीं करने पर मोहग्रस्त होकर वह देहत्याग नहीं कर सकता है। समाधिमरण की प्रक्रिया में भी देहत्याग किया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525052
Book TitleSramana 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2004
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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