SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नत्य शैली है। आज यदि कोई 'ओडिसी' शैली को भाषा कहे, तो वह उसके अज्ञान का ही सचक होगा। उसी प्रकार ओड्मागधी, जो एक नाट्यशैली रही है उसको एक भाषा कहना एक दुस्साहस ही होगा जो डॉ० सुदीपजी ही कर सकते हैं। यदि ओड्मागधी नामक कोई भाषा होती तो दो हजार वर्ष की इस अवधि में संस्कृत एवं प्राकृत का कोई न कोई विद्वान् तो उसका भाषा के रूप में उल्लेख करता अथवा संस्कृत-प्राकृत भाषा के किसी व्याकरण में उसके लक्षणों की कोई चर्चा अवश्य हुई होगी। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में जहाँ भी ओड्मागधी का उल्लेख किया है, उसे एक नृत्यशैली के रूप में ही प्रस्तुत किया है, कहीं भी उसका भाषा के रूप में उल्लेख नहीं किया। यह बात भित्र है कि नृत्यशैली में भी वेशभूषा, भाषा आदि सांस्कृतिक तत्त्व अन्तर्निहित होते हैं। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि ओड्मागधी नामक कोई भाषा थी। वस्तुतः ओड्मागधी एक वृत्ति, प्रवृत्ति या शैली ही थी। भरतमुनि और उनके टीकाकारों और व्याख्याकारों ने सदैव ही उसका नाट्यशैली के रूप में उल्लेख किया है, भारतीय वाङ्मय में ऐसा एक भी सन्दर्भ नहीं है, जो ओड्मागधी को एक भाषा के रूप में उल्लेखित करता हो। वस्तुत: ओड्मागधी है क्या? वह ओड् और मागधी इन दो शब्दों से बना एक संयुक्त शब्द रूप है, इसमें ओड् वर्तमान उड़ीसा प्रदेश की और मागधी मगध प्रदेश की नाट्यशैली की सूचक है। उड़ीसा और मगध प्रदेश की मिश्रित नाट्य शैली को ही ओड्मागधी कहा गया है जो सम्पूर्ण पूर्वीय भारत में प्रचलित थी। वह एक मिश्रित नाट्यशैली मात्र है। किन्तु डॉ० सुदीपजी उसे भाषा मान बैठे हैं, वे प्राकृत-विद्या, अप्रैल-जून १९९८ में पृ० १३-१४ पर लिखते हैं- "ओड्मागधी प्राकृत भाषा का ईसा पूर्व के वृहत्तर भारतवर्ष के पूर्वी क्षेत्र में पूर्णत: वर्चस्व था, यह न केवल इन क्षेत्रों में बोली जाती थी अपितु साहित्य लेखन आदि भी इसी में होता था। इसीलिए सम्राट खारवेल का कलिंग अभिलेखन (हाथी-गुफा अभिलेख) भी इसी ओड्मागधी प्राकृत भाषा में निबद्ध है"। प्रथमत: तो ओड्मागधी मात्र नाट्यशैली थी, भाषा नहीं क्योंकि आज तक एक भी विद्वान ने इसका भाषा के रूप में कोई उल्लेख नहीं किया है। पन: जैसाकि भाई सुदीपजी लिखते हैं कि इसमें साहित्य लेखन होता था तो वे ऐसे एक भी ग्रन्थ का नामोल्लेख भी करें, जो इस ओड्मागधी में लिखा गया हो। पुन: यदि बकौल उनके इसे एक भाषा मान भी लें तो यह उड़ीसा और मगध क्षेत्र की बोलियों के मिश्रित रूप के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। क्योंकि सभी विद्वानों ने एक मत से यह माना है कि अर्धमागधी, मागधी और उसके समीपवर्ती प्रादेशिक बोलियों के शब्द रूपों से बनी एक मिश्रित भाषा है। उड़ीसा मगध का समीपवर्ती प्रदेश है अत: उसके शब्द स्वाभाविक रूप में उसमें सम्मिलित हैं। अत: ओड्मागधी, अर्धमागधी या उसकी एक विशेष विधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525045
Book TitleSramana 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy