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श्रमण प्रो० सागरमल जैन लेख विशेषांक
१.९
२.
३७-४७
लॐ
लेख-सूची १. अर्धमागधी आगम साहित्य : कुछ सत्य और तथ्य जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी?
१०-३६ ३. प्राकृत विद्या में प्रो० टॉटिया जी के नाम से प्रकाशित उनके व्याख्यान
के विचारबिन्दुओं की समीक्षा शौरसेनी प्राकृत के सम्बन्ध में प्रो० भोलाशहुर व्यास की स्थापनाओं की समीक्षा
४८-५६ ५. अशोक के अभिलेखों की भाषा : मागधी या शौरसेनी
५७-६५ क्या ब्राह्मी लिपि में 'न' और 'ण' के लिये एक ही आकृति थी? ६६-७४ ओमागधी प्राकृत : एक नया शगुफा
७५-८३ ८. भारतीय दार्शनिक चिन्तन में निहित अनेकान्त
८४-१०२ ९. जैन दर्शन की पर्याय की अवधारणा का समीक्षात्मक विवेचन १०३-११९ १०. प्रवचनसारोद्धार : एक अध्ययन
१२०-१९० ११. विद्याश्रम के प्राङ्गण में
१९१-१९८ १२. जैन-जगत्
१९९-२०७ १३. साहित्य-सत्कार
२०८-२१२
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