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________________ ३० मागधी को अर्वाचीन बताने के लिये। वस्तुत: प्राकृत और संस्कृत शब्द स्वयं ही इस बात के प्रमाण हैं कि उनमें मूलभाषा कौन-सी है?" ___ संस्कृत शब्द स्वयं ही इस बात का सूचक है कि संस्कृत स्वाभाविक या मूल भाषा न होकर एक संस्कारित कृत्रिम भाषा है। प्राकृत शब्दों एवं शब्द-रूपों का व्याकरण द्वारा संस्कार करके जो भाषा निर्मित होती है उसे ही संस्कृत कहा जा सकता है और जिसे संस्कारित न किया गया हो वह संस्कृत कैसे होगी? वस्तुत: प्राकृत स्वाभाविक या सहज बोली है और उसी को संस्कारित करके संस्कृत भाषा निर्मित हुई है। इस दृष्टि से प्राकृत मूल भाषा है और संस्कृत उससे उद्भूत हुई है। हेमचन्द्राचार्य के पूर्व नमिसाधु ने रुद्रट के 'काव्यालङ्कार' की टीका में प्राकृत और संस्कृत शब्द का अर्थ स्पष्ट कर दिया है। वे लिखते हैं सकलजगज्जन्तुनां व्याकरणादिभिरनाहितसंस्कार: सहजो वचनव्यापारः प्रकृति: तत्र भवं सैव वा प्राकृतम्। आरिसवयणे सिद्धं, देवाणं अद्धमागहा वाणी इत्यादि, वचनाद्वा प्राक् पूर्वकृतं प्राकृतम्, बालमहिलादिसुबोध-सकलभाषा-निन्धनभूत-वचनमुच्यते। मेघनिर्मुक्तजलमिवैकस्वरूपं तदेव च देशविशेषात् संस्कार-करणात् च समासादित-विशेष सत् संस्कृतादुत्तरभेदोनाम्नोति। -काव्यालङ्कार टीका, नमिसाधु २/१२ ___ अर्थात् जो संसार के प्राणियों का व्याकरण आदि के संस्कार से रहित सहज वचन व्यापार है, उससे निःसृत भाषा प्राकृत है, जो बालक, महिला आदि के लिये भी सुबोध है और पूर्व में निर्मित होने से (प्राक् कृत) सभी भाषाओं की रचना का आधार है वह तो मेघ से निर्मक्त जल की तरह सहज है,उसी का देश-प्रदेश के आधार पर किया गया संस्कारित रूप संस्कृत और उसके विभिन्न भेद अर्थात् विभिन्न साहित्यिक प्राकृतें हैं। सत्य यह है कि बोली के रूप में तो प्राकृतें ही प्राचीन हैं और संस्कृत उनका संस्कारित रूप है, वस्तुत: संस्कृत विभिन्न प्राकृत बोलियों के बीच सेतु का काम करने वाली एक सामान्य साहित्यिक भाषा के रूप में अस्तित्व में आयी। यदि हम भाषा-विकास की दृष्टि से इस प्रश्न पर चर्चा करें तो भी यह स्पष्ट है कि संस्कृत सुपरिमार्जित, सुव्यवस्थित और व्याकरण के आधार पर सुनिबद्ध भाषा है। यदि हम यह मानते हैं कि संस्कृत से प्राकृतें निर्मित हुई हैं, तो हमें यहभी मानना होगा कि मानवजाति अपने आदिकाल में व्याकरणशास्त्र के नियमों से संस्कारित संस्कृत भाषा बोलती थी और उसी से वह अपभ्रष्ट होकर शौरसेनी और शौरसेनी से अपभ्रष्ट होकर मागधी, पैशाची, अपभ्रंश आदि भाषाएँ निर्मित हुईं। इसका अर्थ यह भी होगा कि मानव जाति की मूल भाषा अर्थात् संस्कृत से अपभ्रष्ट होते-होते ही विभिन्न भाषाओं का जन्म हुआ; किन्तु मानव जाति और मानवीय संस्कृति के विकास का वैज्ञानिक इतिहास इस बात को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525045
Book TitleSramana 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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