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________________ २८ में बुद्धघोष का निम्न कथन सबसे बड़ा प्रमाण है सा मागधी मूलभाषा नरायाय आदिकप्पिका। ब्रह्मणी च अस्सुतालापा संबुद्धा चापि भासरे।। अर्थात् मागधी ही मूल भाषा है, जो सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न हुई थी और न केवल ब्रह्मा (देवता) अपितु बालक और बुद्ध (संबुद्ध महापुरुष) भी इसी भाषा में बोलते हैं (See- The preface to the Childer's Pali Dictionary)। इससे यही फलित होता है कि मल बद्ध-वचन मागधी प्राकृत भाषा में थे। पालि उसी मागधी का संस्कारित साहित्यिक रूप है, जिसमें कालान्तर में बुद्ध-वचन लिखे गये। वस्तुत: पालि के रूप में मागधी का एक ऐसा संस्करण तैयार किया गया, जिसे संस्कृत के विद्वान् और भिन्न-भिन्न प्रान्तों के लोग भी आसानी से समझ सकें। अत: बुद्ध-वचन मूलत: मागधी में थे, न कि शौरसेनी में। बौद्ध त्रिपिटक की पालि और जैन आगमों की अर्धमागधी में कितना साम्य है, यह तो ‘सुत्तनिपात' और 'इसिभासियाई' के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है। प्राचीन पालि ग्रन्थों की एवं प्राचीन अर्धमागधी आगमों की भाषा में अधिक दूरी नहीं है। जिस समय अर्धमागधी और पालि में ग्रन्थ रचना हो रही थी, उस समय तक शौरसेनी एक बोली थी, न कि एक साहित्यिक भाषा। साहित्यिक भाषा के रूप में उसका जन्म तो ईसा की दूसरी शताब्दी के बाद ही हुआ है। संस्कृत के पश्चात् सर्वप्रथम साहित्यिक भाषा के रूप में यदि कोई भाषा विकसित हुई है तो वे अर्धमागधी एवं पालि ही हैं, न कि शौरसेनी। शौरसेनी का कोई भी ग्रन्थ या नाटकों के अंश ईसा की दूसरी-तीसरी शती से पूर्व का नहीं है जबकि पालि त्रिपिटक और अर्धमागधी आगम साहित्य के अनेक ग्रन्थ ई०पू० तीसरी-चौथी शती में निर्मित हो चुके थे। 'प्रकृतिः शौरसेनी' का सम्यक् अर्थ जो विद्वान् मागधी या अर्धमागधी को शौरसेनी से परवर्ती एवं उसी से विकसित मानते हैं वे अपने कथन का आधार वररुचि (लगभग ७वीं शती) के प्राकृत-प्रकाश और हेमचन्द्र (लगभग १२वीं शताब्दी) के प्राकृत-व्याकरण के निम्न सूत्रों को बनाते हैंअ. १. प्रकृति: शौरसेनी (१०/२) अस्या: पैशाच्या: प्रकृति: शौरसेनी। स्थितायां शौरसेन्यां पैशाची-लक्षणं प्रवर्तत्तितव्यम्। प्रकृति: शौरसेनी (११/२) अस्याः मागध्या: प्रकृतिः शौरसेनीति वेदीतव्यम्। -वररुचिकृत 'प्राकृतप्रकाश' For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525045
Book TitleSramana 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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