SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३५ किया गया है। ९८३ द्वार में दस प्रायश्चितों का विवेचन किया गया है। दस प्रायश्चित निम्न हैं- (१) आलोचना (२) प्रतिक्रमण (३) आलोचना सहित प्रतिक्रमण (४) विवेक (५) व्युत्सर्ग (६) तप (७) छेद (८) मूल (९) अनवस्थित उपस्थापना और (१०) बाराञ्चिका ९९वें द्वार में ओघसमाचारी अर्थात् सामान्य समाचारी का विवेचन है, यह विवेचन ओधनियुक्ति में प्रतिपादित समाचारी पर आधारित है। १००वें द्वार में पद विभाग समाचारी का उल्लेख है। ज्ञातव्य है कि छेदसूत्रों में वर्णित समाचारी पद विभाग समाचारी कहलाती है। १०१वें द्वार में चक्रवाल समाचारी का विवेचन किया गया है। चक्रवाल समाचारी इच्छाकार, मिथ्याकार आदि दस प्रकार की है। यह समाचारी उत्तराध्ययन और भगवतीसूत्र में भी वर्णित है। प्रस्तुत कृति में इस समाचारी का विस्तृत विवेचन है। १०२वें द्वार में उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी का विवेचन किया गया है। १०३वें द्वार में गीतार्थ विहार और गीतार्थ आश्रित विहार का निर्देश है। इसी सोरर्भ में यात्रा करते समय किस प्रकार की सावधानी रखना चाहिये, इसका भी विवेचन किया गया है। ज्ञातव्य है कि आगम के साथ-साथ देश-काल और परिस्थिति का आकलन करने में समर्थ साधक गीतार्थ कहलाता है। १०४वें द्वार में अप्रतिबद्ध विचार का निर्देश है। इसमें यह बताया गया है कि मुनि चातुर्मास काल में चारमास तक, अन्य काल में एक मास तक एक स्थान पर रह सकता है, उसके पश्चात् सामान्य परिस्थिति में विहार करना चाहिए। १०५३ द्वार में जातकल्प और अजातकल्प का निर्देश है। श्रुतसम्पन्न गीतार्थ मुनि के साथ यात्रा करना जातकल्प है और इससे भिन्न अजातकल्प । इसी क्रम में ऋतुबद्ध बिहार को सम्मत विहार कहा गया है और इससे भिन्न विहार को असम्मत विहार कहा गया है। १०६वें द्वार में मल-मूत्र आदि के प्रतिस्थापन अर्थात् विसर्जन की विधि का विवेचन है। इसी प्रसंग में विभिन्न दिशाओं का भी विचार किया गया है। १०७वे द्वार में दीक्षा के अयोग्य अट्टारह प्रकार के पुरुषों का उल्लेख किया गया है। इसी क्रम में १०८ वें द्वार में दीक्षा के अयोग्य बीस प्रकार की स्त्रियों का भी उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525045
Book TitleSramana 2001 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy