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________________ दीघनिकाय में व्यक्त सामाजिक परिवेश डॉ० दीनानाथ शर्मा भारतीय इतिहास में महात्मा बुद्ध ऐसे विचारक थे, जिनके उदय से भारत का निश्चयात्मक इतिहास जाना जा सकता है। उनसे ही समस्त संसार ने सर्वप्रथम मनुष्यता सीखी। उनकी बुद्धत्व प्राप्ति से लेकर उनके परिनिर्वाण तक उन्होंने जो कुछ और जहाँ कहीं भी कहा उसी का संकलन पालि त्रिपिटकों में किया गया है। जैसा कि सर्वविदित है पालि भाषा तत्कालीन जनसाधारण की भाषा थी जो मगध प्रदेश में बोली जाती थी। इसी भाषा के माध्यम से महात्मा बुद्ध अपने उपदेश को जन-जन तक पहुँचाते थे। बुद्ध वचन को तीन भागों में विभक्त किया गया है जो विषय और शैली के कारण एक दूसरे से भिन्न हैं। भिक्षु संघ के निर्माण तथा अनुशासन सम्बन्धी नियम विनयपिटक में संगृहीत हैं। बुद्ध द्वारा भिन्न-भिन्न स्तर के लोगों को दिये गये उपदेशों का संकलन सत्तपिटक में है और पारिभाषिक शब्दों में उपदिष्ट गम्भीर धर्मदर्शन का विवेचन अभिधम्मपिटक में है। बुद्ध उपदेश वास्तव में सत्तपिटक में संग्रहीत हैं। सूत्तपिटक पाँच निकायों में विभक्त है- दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुक्तनिकाय, अंगुत्तरनिकाय और खुद्दकनिकाय। बुद्ध के समकालीन श्रमणों, ब्राह्मणों और परिव्राजकों के जीवन और सिद्धान्तों के विवरण, गौतम बुद्ध के विषय में उनके मत और दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध, साधारण जनता में प्रचलित उद्योग और व्यवसाय, मनोरञ्जन के साधन, कला और विज्ञान, तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति और राजन्यगण, ब्राह्मणों के धार्मिक सिद्धान्त, जातिवाद, वर्णवाद, यज्ञवाद, भौगोलिक परिस्थितियां जैसे-गाँव, निगम, नगर, जनपदादि के विवरण और उनके निवासियों के जीवन की साधारण अवस्था, नदी-पर्वत आदि के विवरण, साहित्य और ज्ञान की अवस्था, कृषि और वाणिज्य, सामाजिक रीतियां, जीवन का नैतिक स्तर; स्त्रियों, दास-दासियों और भृत्यों की अवस्था आदि के विवरण सुत्तपिटक में भरे पड़े हैं, जो बुद्ध और उनके शिष्यों के जीवन और उपदेशों के साथ-साथ तत्कालीन भारतीय सामाजिक और राजनैतिक परिस्थिति आदि का अच्छा दिग्दर्शन कराते हैं। १ प्रस्तुत आलेख में दीघनिकाय में व्यक्त सामाजिक परिवेश की चर्चा की गयी है। *. व्याख्याता, प्राकृत विभाग, भाषासाहित्य भवन, गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद, ३८०००९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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