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________________ ८९ निवेदन किया प्रभो! मेरी सम्पत्ति का क्षय और वृद्धि का क्या कारण है? मुनिराज ने इस प्रकार धम्मिल का पूर्वभव वृत्तान्त कहा इसी भरत क्षेत्र में भृगुकच्छ नामक नगर है। वहाँ महाधन नाम का एक कौटुम्बिक रहता था। मरुदेश में दुर्लभ हंसिनी की भाँति उसके कानों में कभी दयामय जिनवाणी का प्रवेश ही नहीं हुआ था अत: वह हिंसा-अहिंसा के मर्म से अज्ञानी था, उसकी स्त्री भी पापों में मलिन थी। किन्तु उसका पुत्र सुनन्द जन्म से ही उत्तम स्वभाव व चरित्रवाला था। एक दिन महाधन के यहाँ उसके कई मित्र आये जिनके लिये सम्मानपूर्वक भोजन का आयोजन किया गया। उसने एक अतिथि के साथ सुनन्द को मांस लाने के लिए बाजार में भेजा। मांस शेष हो जाने से मच्छी बाजार में गये वहाँ भी मृतक मत्स्य न मिले। सनन्द के इनकार करने पर भी मेहमान ने जीवित मत्स्य खरीदे और घर आते तालाब के निकट मेहमान के देह चिन्ता के लिए जाते मत्स्य भार सुनन्द को सौंपा। सुनन्द ने पानी के बिना तड़फती मछलियों को दयाभाव से जलाशय में डाल दिया और दया धर्म का विचार करने लगा। मेहमान ने जब सुनन्द से पूछा मछलियाँ सब कहाँ हैं? उसने कहा मैंने तो जलाशय में डाल दी। मेहमान क्रुद्ध हुआ और घर आकर पिता से कहा। निर्दयी पिता ने सुनन्द को लाठी से खूब पीटकर घर से निकाल दिया। सुनन्द ने अपने हृदय से दया को न छोड़कर जैसे-तैसे आजीविका चलाई और मनुष्य गति का आयुष्य बंधकर मरा। किसी पार्वत्य गुफाओं वाली एक पल्ली में निर्दय-निष्ठुर स्वभाव वाला मंदर नामक पापी राजा था जिसकी पत्नी बनमाला भी तदनुरूप थी। सुनन्द का जीव उसकी कोख में उत्पन्न हुआ। उसका नाम सरभ रखा गया। वह अपने कुलयोग्य शिक्षा पाकर तरुण हुआ तो उसका पिता मरणांत व्याधिग्रस्त होकर दुर्गति में गया। सरभ उसका उत्तराधिकारी बना और सबका प्रिय हुआ। एक दिन वह सशस्त्र अपने परिवार के साथ किसी निकटवर्ती पर्वत पर गया। उसने देखा कितने ही दुर्बल देह वाले नि:शस्त्र पुरुष पृथ्वी पर दृष्टि रखकर चले आ रहे थे। उसने सोचा, ये लोग हमारी पल्ली से भिन्न ही प्रकार के हैं। उनके निकट जाने पर “धर्मलाभ' आशीर्वाद पाकर सरभ ने पूछा, आप कौन हैं? उन्होंने मुंहपत्ती के उपयोगपूर्वक मधुर वचनों से कहा- महानुभाव! हम धर्मज्ञ धर्मोपदेश देने वाले श्रमण हैं। धीमे-धीमे चलते हुए हम साथी से बिछुड़ गये और मार्ग से अनभिज्ञ होने से पहाड़ पर आ गये। उनकी मधुर वाणी से आकृष्ट सरभ ने सानन्द पूछा, आप क्या और कौन सा धर्मपालन करते हैं? मुनियों ने उसे सरल स्वभावी आत्मा ज्ञात कर धर्म का मर्म समझा कर पुण्य मार्ग पर चढ़ाया। सरभ ने उन्हें साथ जाकर मार्ग बतलाकर अपना कर्तव्य निभाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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