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________________ ८६ आकर पति को बधाया । धम्मिल ने उसे क्षमा करके हाथी पर बैठाकर राजा से प्राप्त महल में ले आया। इस प्रकार धम्मिल अपनी तीन स्त्रियों के साथ आनन्दपूर्वक रहने लगा। एक दिन राजा को किसी ने वक्रगति वाला अश्व भेंट किया। राजा की आज्ञा धम्मल उस अश्व पर आरूढ़ होकर घूमने निकला। उसने नगर के बाहर जाकर उसे रोकने के लिए लगाम खींचा। किन्तु वह पवन वेग से दौड़ता हुआ निर्जन जंगल में ले आया और थककर नदी तट पर रुक कर खड़ा हो गया । धम्मिल घोड़े से उतरकर सुन्दर भूमि पर घूमने लगा। उसने एक वृक्ष पर लटकती हुई हीरों से जड़ी हुई मूठवाली सुन्दर तलवार देखी। उसने साश्चर्य सोचा यहाँ तलवार कहाँ से आई। उसे हाथ में लेकर धार की परीक्षा हेतु वंशजाल पर चलाई । उस झाड़ी में स्थित विद्या साधक का मस्तक धड़ से अलग होकर जा गिरा। यह ज्ञातकर धम्मिल को अपार पश्चाताप हुआ । धम्मिल उसके किसी सम्बन्धी की खोज में इधर-उधर देखने लगा तो एक अप्सरा की भाँति कमलमुखी चित्रसेना नामक विद्याधरी को देखा, धम्मिल ने उसके पास जाकर प्रेम पूर्वक पूछा- हे देवी! आप कौन हो और यहाँ कहाँ से आयी हो ? उसने कहा वैताढ्य पर्वत पर शङ्खपुर के राजा पुरुषानन्द के विद्युन्मती और विद्युतलता नामक दो पुत्रियाँ और कामोन्मत्त नामक एक पुत्र है । एक दिन ज्ञानी भगवंत शंखपुर नगर में पधारे। धर्मदेशना श्रवणानंतर रानी ने पूछा कि प्रभो ! मेरी दोनों पुत्रियों का स्वामी कौन होगा, तो धर्मघोष नामक ज्ञानी भगवंत ने कहा जिसके हाथ से तुम्हारा पुत्र मारा जाएगा वही पुत्रियों का स्वामी होगा। वह कामोन्मत राजकुमार सोलह विद्याधर पुत्रियों का हरण करके लाया है और उसने अपनी दोनों बहिनों के साथ उन सोलह कन्याओं को एक मनोहर महल में रखा है। वह राजकुमार विद्या साधनार्थ इस जंगल में आया है, अब थोड़ी देर में उसे चन्द्रहास नामक खङ्ग सिद्ध होने वाला है। यह सुनकर धम्मिलकुमार ने बतलाया कि वह कामोन्मत्त कुमार अपनी ही तलवार द्वारा मारा गया है। उस विद्याधरी ने कहा- आप यहीं खड़े रहें, मैं अपने स्थान में जाकर उसकी बहनों आदि सभी से बात करती हूँ । यदि सब राजी हुईं तो मैं आपको आने के लिए लाल रंग की ध्वजा ऊँची कर संकेत करूँगी और नाराज हुईं तो श्वेत ध्वजा बताऊँगी तो आप चले जाना। धम्मिल वहाँ खड़ा रहा, किन्तु थोड़ी देर बाद श्वेत ध्वजा देखकर वहाँ से चल निकला। धम्मल वहाँ से चलता हुआ करबट नामक गाँव में आया। उस गाँव में चम्पानगर के राजा कपिलदेव का लघुभ्राता वसुदत्त राज्य करता था। उसका अपने भाई के साथ संघर्ष हुआ था। उसकी तरुण पुत्री पद्मावती कुष्टरोग से पीड़ित थी, अनेक उपचार करने पर भी रोग न मिटता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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