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________________ ८४ का पुत्र धम्मिल हूँ। तुम कमला को मेरे प्रति रागवती बनाने की कृपा करो !” धायमाता ने अनुकूलता के प्रयत्न करने की स्वीकृति दी । दूसरे दिन प्रातः काल ठाकुर से आज्ञा प्राप्त कर इन्होंने चम्पानगरी को प्रयाण किया। मार्ग में धम्मिल ने हाथी, चोर आदि को पराजित कर अपना पराक्रम बतलाया । धायमाता ने कमला से कहा, "ये पराक्रम से महान् कुलवान मालूम देता है अत: तुम इस धम्मिल को ही स्वीकार करो। स्त्रियों को अविवाहित नहीं रहना चाहिये ! " कमला ने कहा, "सती स्त्री यदि अपरिणीत हो तो भी उसे कोई भय नहीं रहता। अकेली महासती शीलवती ने राजा, मन्त्री आदि को हरा दिया था।" फिर उसने शीलवती की कथा कही । चम्पापुरी के निकट पहुँचने पर सामने आते बहुत से मनुष्यों को देखकर धम्मिल सोचने लगा- ये लोग कौन होंगे? इतने में ही एक व्यक्ति ने आकर कहा- आपके द्वारा मारा गया चोर अर्जुन हमारे पल्लीपति अजितसेन का शत्रु था । इसलिए हमारे स्वामी आप पर प्रसन्न हो कर आपसे मिलना चाहते हैं । धम्मिल पल्लीपति से मिला, उसने पल्ली में ले जाकर उसका बड़ा सत्कार किया। कुछ दिन रहकर ये लोग चम्पापुरी की ओर चले। चम्पापुरी के बाहर रथ को रखकर रहने के लिए स्थान देखने धम्मिल शहर की ओर चला। मार्ग में चन्द्रा नदी में स्नान करने के लिए प्रविष्ट हुआ और कमल पत्रों पर अपने नख द्वारा कलापूर्ण आकृति बनाकर नहाते हुए नदी में बहाने लगा। आगे वाले घाट पर चम्पानरेश कपिल का राजकुमार मित्र परिवार सहित नहा रहा था। उसने कमल पत्रों पर बहकर आई कलाकृतियाँ देखकर सोचा अवश्य ही यहाँ कोई महान् कलाकार व्यक्ति होना चाहिये । उसने कला से मुग्ध होकर कलाकार (धम्मिल) को बुलाने के लिए अपने अनुचरों को भेजा। जब धम्मल आकर राजकुमार से मिला तो उनमें परस्पर मित्रता स्थापित हो गई। फिर राजकुमार सुन्दर हाथी पर बैठ कर धम्मिल के साथ कमला कुमारी के रथ के पास आया और उनका धूमधाम से नगर प्रवेश करा के एक सुन्दर विशाल महल में उन्हें उतारा। वहाँ खान-पान की पर्याप्त सामग्री भेजकर निवास की सुन्दर व्यवस्था कर दी। राजकुमार प्रतिदिन धम्मिल के साथ घूमने जाता और उसके कला-कौशल व चतुराई से वह सन्तुष्ट हो गया । एक दिन किसी मित्र ने राजकुमार से कहा- तुम्हारे मित्र धम्मिल के साथ रहने वाली कमलाकुमारी उसकी पत्नी तो नहीं लगती। क्योंकि उनका व्यवहार पार्थक्य प्रतिभासित होता है । अतः राजकुमार ने इस बात की प्रतीति करने के लिए दूसरे दिन प्रातः काल सब मित्रों को बगीचे में आयोजित गोठ में सपत्नीक आने का आदेश दिया। धम्मल ने धायमाता से सारी बात बतलाकर चिन्तातुर हो कहीं चले जाने का कहा क्योंकि कमला मुझसे द्वेष रखती है और साथ न चलने से मुझे मित्रों में हास्यास्पद बनना होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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