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________________ ५० की व्यवस्था के लिये अनुदान देने और वि० सं० १३४६ के शिलालेख में मन्दिर के कल्याणक उत्सव के लिये ३० द्रम्म देने का विवरण मिलता है । ७२ (स) भीनमाल के शिलालेख (१) भीनमाल जालोर मण्डल में जैन धर्म का मुख्य केन्द्र था । संवत् १३३३ एक अभिलेख से भगवान् महावीर के भीनमाल आने की सूचना मिलती है । ७३ वैसे भीनमाल में जैन धर्म नवीं शताब्दी के बाद अधिक लोकप्रिय हुआ । वि० सं० १८७३ के अभिलेख से वहाँ महावीर की प्रतिमा को पुनः स्थापित करने का उल्लेख मिलता है । ' ७४ इस प्रतिमा की स्थापना विजयजिनेन्द्रसूरि ने की । वि० सं० २०१८ में इस मन्दिर पर शिखर स्थापित किया गया। |७५ पार्श्वनाथ के घुम्मट युक्त मन्दिर में भी वि०सं० १६८३ का लेख उत्कीर्ण है जिससे ज्ञात होता है कि इस मन्दिर की प्रतिष्ठा विजयदेवसूरि ने की। ७६ शान्तिनाथ मन्दिर के वि०सं० १२१२ के लेख से ज्ञात होता है कि पूर्व यह मन्दिर आदिनाथ का था, बाद में इसमें शान्तिनाथ की प्रतिमा स्थापित की गई। ७७ पार्श्वनाथ मन्दिर के प्रवेश द्वार (सेठों का बास- हाथियों की पोल ) पर वि०सं० १६७१ शिलालेख से मन्दिर के जीर्णोद्धार कराये जाने की जानकारी मिलती है। अभिलेख में वि० सं० १६७१ में इसी मन्दिर में चन्द्रप्रभ स्वामी की प्रतिमा स्थापित करवाने का उल्लेख है।७८ (२) मन्दिर एवं प्रतिमा लेख- जालोर क्षेत्र में जैन धर्म के उत्थान पर विचार करने हेतु उस भू-भाग में स्थित प्राचीन एवं अर्वाचीन मन्दिरों का अध्ययन करना आवश्यक है। मन्दिरों के शिलालेखों में गृह, विहार चैत्य, भवन, देवकुल, तीर्थ, वसति आदि शब्द मिलते हैं। प्रारम्भ में मन्दिर साधारण स्थापत्य के होते थे। बाद में श्वेताम्बर जैन मन्दिर अलङ्करण पूर्ण बनने लगे। कई मन्दिरों में तो बाद में उनके साथ मण्डप बनवाकर उन्हें सुन्दर बनाने का प्रयास किया गया। जैन मन्दिरों में समय - समय पर जो कलापूर्ण स्तम्भ बने उनपर तथा मण्डपों पर उनके निर्माता का नाम उत्कीर्ण मिलता है । प्राचीन मन्दिरों के निर्माण सम्बन्धी शिलालेखों की जालोर क्षेत्र में कमी नहीं है। जालोर 'दुर्ग में प्रतिहार सम्राट् नागभट्ट प्रथम के समय यक्ष वसति नामक जैन मन्दिर बना था । कुवलयमाला के अनुसार वत्सराज के समय भी ऋषभदेव का विशाल मन्दिर था । श्रेष्ठी यशोवीर ने इसमें मण्डप का निर्माण करवाया। जालोर में तीसरा मन्दिर महावीर का था। जिसे कई अनुदान प्राप्त हुए थे। जालोर का अन्य प्रसिद्ध मन्दिर कुमार विहार था, जिसे वि०सं० १२२१ में कुमारपाल ने बनवाया था। मोहम्मद गोरी के आक्रमण से इस मन्दिर को भारी क्षति पहुंची थी। इसलिये २१ वर्ष बाद इसका पुनः निर्माण हुआ । चाहमान शासक समरसिंह ने इस कार्य में रुचि प्रदर्शित की। बाद में इस मन्दिर पर स्वर्णकलश और ध्वज की स्थापना की गई। वि०सं० १२९६ के For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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