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________________ ३६ पञ्चेन्द्रिय निग्रह, षड् आवश्यक, सप्तगुण, कुल अट्ठाईस मूल गुण निर्दिष्ट हैं। ४० बाईस परीषह जय, योग, व्रत और मौन धारण श्रमण के उत्तर गुण हैं । क्षमादि दस धर्म, द्वादशानुप्रेक्षाओं का चिन्तन भी श्रमण का कर्त्तव्य है । ४१ श्रमणों के सप्तगुण एवं समिति पालन में सूक्ष्म जीवों के प्रति अहिंसा दृष्टि है । उनके पञ्चेन्द्रिय निग्रह में निर्विकार भाव का, नग्नत्व में अपरिग्रह का, सामायिक, स्तुति, वन्दना में आत्मशुद्धि का, द्वादशानुप्रेक्षाओं के मनन में और क्षमादि दस धर्म के अनुशीलन में आत्मोत्थान का चिन्तन समाहित है। इस प्रकार श्रावक एवं श्रमणाचार संहिता आचार शुद्धि, भाव शुद्धि और अन्ततः पर्यावरण शुद्धि का पथ प्रशस्त करती है। पर्यावरण संरक्षक समग्र जैन वाङ्मय में सिद्धान्त एवं आचार की प्रस्तुति के साथ यत्र-तत्र प्राकृतिक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति भी है। ऋतु, नदी, वन, उपवन, तीर्थ, पर्वत, वृक्ष, वनस्पति, पशु-पक्षी आदि का चित्रण जैनाचार्यों और कवियों के सूक्ष्म पर्यावरणीय चिन्तन की ही परिणति है । इस प्रकार जैन वाङ्मय आद्यंत पर्यावरण चिन्तन से ओत-प्रोत है जिसमें प्रतिपल 'अहिंसा परमोधर्मः', 'सत्यमेवेश्वरः', 'आत्म यथा स्वस्थ तथा परस्य', 'व्यथा स्वयं वाञ्छति तत्परेभ्यः कुर्यात्' आदि उक्तियों से अहिंसा और सर्वोदय का स्वर मुखरित होता है । शान्ति पाठ, सामायिक पाठ, आलोचना पाठ से षट्कायिक जीवों के संरक्षण एवं सन्तुलन का स्वर उद्घोषित होता है। जैन वाङ्मय में बाह्य पर्यावरण के साथ अन्त: पर्यावरण का सूक्ष्म विश्लेषण है। मानव का आध्यात्मिक चिन्तन उसे भौतिक जगत् में कर्म हेतु प्रवृत्त करता है, अतः भौतिक पर्यावरण शुद्धि के लिये आध्यात्मिक अर्थात् आत्मिक शुद्धि आवश्यक है। इसके लिये अनेकान्त दृष्टि से विचार और अहिंसा दृष्टि से व्यवहार या आचार परम आवश्यक है तभी व्यक्ति, समाज और देश में स्वस्थ जीवन पौध का पुनः अंकुरण सम्भव है। सन्दर्भ : १. २. ३. ४. अग्निमीडे पुरोहितम् । यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् । ऋग्वेद १/१. तस्माद्वा एतस्मादात्मनः आकाशः सम्भूतः । आकाशाद्वायुः । बायोः अग्निः अग्नेरापः । अद्भयः पृथिवी । पृथिव्या औषधयः । तैत्तरीयोपनिषद, द्वितीय वल्ली, प्रथम अनुवाक. अथर्ववेद, पृथ्वीसूक्त १२-१. कठोपनिषद्, ५-१०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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