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________________ १५५ वीर बहादुर सिंह पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय से सम्बद्धता का प्रयास पार्श्वनाथ विद्यापीठ अभी तक शोधकार्यों के लिये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से सम्बद्ध है, साथ ही वीर बहादुर सिंह पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय, जौनपुर से भी सम्बद्धता प्राप्त करने हेतु प्रयास किया गया और यह सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि इस सन्दर्भ में लगभग सारी औपचारिकतायें पूर्ण हो चुकी हैं। आशा है अब हमें अतिशीघ्र सम्बद्धता प्राप्त हो जायेगी। मान्यता प्राप्त होने से देश के किसी भी भाग में रहने वाला छात्र यहाँ से शोधकार्य कर सकेगा। इससे शोध छात्रों की संख्या बढ़ेगी और शोधकार्य में पर्याप्त गति सम्भव हो सकेगी। प्रवासी जैन तीर्थ यात्रियों का विद्यापीठ में आगमन २१ जनवरी को अमेरिका के प्रवासी जैन तीर्थयात्रियों का एक बड़ा समूह श्री दिलीप शाह के नेतृत्व में वाराणसी पहुंचा। इस संघ में १२८ यात्री थे। इन सभी के मन में पार्श्वनाथ विद्यापीठ को भी देखने की उत्कट अभिलाषा थी। २२ जनवरी को दिन में ११ बजे उक्त सभी तीर्थयात्री संस्थान में पधारे जहां निदेशक प्रो० भागचन्द्र जैन, विद्यापीठ के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ० अशोककुमार सिंह, प्रशासनिक अधिकारी डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, प्रवक्ताद्वय डॉ. विजयकुमार जैन एवं डॉ० सुधा जैन, पार्श्वनाथ जन्मभूमि जीर्णोद्धार ट्रस्ट, वाराणसी के अध्यक्ष कुंवर विजयानन्द सिंह आदि ने उनका भव्य स्वागत किया। इस अवसर पर विद्यापीठ के प्रकाशनों की एक प्रदर्शनी भी लगायी गयी। तीर्थयात्रियों को संस्थान परिसर में भ्रमण कराया गया और उन्हें यहां की शैक्षणिक गतिविधियों से परिचित कराया गया। सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रो० रमणलाल ची० शाह और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती तारा आर० शाह भी उक्त संघ के साथ आये थे। तीर्थयात्रियों ने यहां की गतिविधियों को देखकर हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की और उसी समय १० हजार डालर अनुदान देने का वचन दिया। इस अवसर पर प्रत्येक तीर्थयात्रियों को संस्थान की ओर से स्मृतिचिह्न तथा स्मारिका भेंट में दी गयी। संस्थान के प्रकाशनों को देखकर सभी ने प्रसनता व्यक्त की और काफी मात्रा में उसे क्रय भी किया। इन सभी ने ५० हजार रुपये तुरन्त एकत्र कर संस्थान को भेंट में दिया और यह आश्वासन दिया कि इस निमित्त संस्थान का कोई भी व्यक्ति यदि अमेरिका जाये तो उसे भरपूर वित्तीय सहायता दी जायेगी। संघ का हर व्यक्ति यह अनुभव कर रहा था कि अब संस्थान में उन्हें और उनकी सन्तति को अध्ययन की सुविधायें बेहतर रूप में प्राप्त हो सकेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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