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________________ उससे तो कोई भी ज्ञान आगे विकसित हो ही नहीं सकता। जहाँ ज्ञान नहीं है वहाँ सृजन कहाँ से होगा। ऐसी दशा में अनन्त सम्भावनाओं वाले अनेकान्त की शिक्षा से हमें बहुत प्रेरणा मिलेगी। वह अवक्तव्य तक मानवी कल्पना को पहुंचाता है। आधुनिक युग में दो प्रकार की संस्कृति प्रचलन में है। एक पाश्चात्य संस्कृति और दूसरी पौर्वात्य संस्कृति। पाश्चात्य संस्कृति बहिर्मुखी होने के कारण भौतिकता को अधिक महत्त्व देती है और पौर्वात्य संस्कृति अन्तर्मुखी होने से आध्यात्मिक सुप्त शक्तियों के विकास द्वारा मानव को सुखी बनाने में प्रयत्नशील है। इसीलिए पौर्वात्य संस्कृति स्वयंप्रधान है। इन दोनों संस्कृतियों के संघर्ष में मनुष्य की स्थिति दोलन (Pendulam) जैसी है। भारतीय संस्कृति समन्वयात्मक है। उसमें दोनों विचार पद्धतियों का समावेश है। वह व्यक्ति के आध्यात्मिक और आधिभौतिक विकास को समान्तररूप से स्वीकार करती है। आज जो समस्याएँ हमारे समाज के सामने हैं वे किसी एक पक्ष पर अधिक झुकने या एकान्तिक दृष्टिकोण अपनाने से उत्पन्न हैं। सामाजिक सुख और शान्ति के लिए एक सुसंस्कृत समाज के लिए दोनों पद्धतियों का समन्वय करके चलना श्रेयस्कर होगा। अत: एकान्तवाद को छोड़कर समन्वय के प्रयोजक, अनेकान्तवाद का अवलम्बन आधुनिक सन्दर्भ में उपयुक्त होगा, क्योंकि अनेकान्तवाद आध्यात्मिक जीवन का मूल तो है ही वह लौकिक जीवन को भी सुव्यवस्थित करता है। भारतीय संस्कृति और कला के क्षेत्र में दी जाने वाली शिक्षाओं में अनेकान्तवाद की शिक्षा भारतीय संस्कृति की यथार्थ शिक्षा के लिए अत्यन्त आवश्यक है। ५. वैज्ञानिक शिक्षा में १५ वीं शती के विज्ञान के लिए परमार्थ सत्ता के सम्बन्ध में निरपेक्ष रूप से कुछ कहना सम्भव था। परन्तु आधुनिक युग के विज्ञान के लिए ऐसा कुछ कहना सम्भव नहीं हो रहा है। क्योंकि विज्ञान यह अनुभव करने लगा है कि परमार्थ सत्ता का कोई एकान्तिक स्वरूप नहीं हैं। अत: अनेकान्त का यह दार्शनिक सत्य अब वैज्ञानिक सत्य भी बन रहा है। वैज्ञानिक सापेक्षवाद (Theory of Relativity) के सन्दर्भ में स्याद्वाद और अनेकान्तवाद का अध्ययन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों ने इस बात का स्वीकार किया है कि हम वस्तु के स्वरूप को अनेकान्तिक दृष्टि से ही जान सकते हैं और विश्लेषित कर सकते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टाइन आदि ने विश्व में व्याप्त सापेक्षता के सिद्धान्त के खोज द्वारा एक छोटे से परमाणु तक में अनन्त शक्ति और गुणों का होना सिद्ध कर दिया है। जिस पदार्थ के विषय में यह कहा जाता है कि इसका वजन एक सौ चौवन पाउण्ड है, सापेक्षवाद कहता है कि यह है भी और नहीं भी। क्योंकि भूमध्य रेखा पर यह एक सौ चौवन पाउण्ड है पर दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव पर वह एक सौ पचपन पाउण्ड है। गति और स्थिति आदि को ले कर वह और भी बदलता रहता है। प्रो. पी.सी. महालनवीस ने स्याद्वाद के सप्तभंगी को सांख्यिकी सिद्धान्तों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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