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________________ और द्वेषों के मूल में है। आज के वर्तमान सामाजिक परिवेश में व्यक्ति और व्यक्ति के बीच, एक वर्ग तथा दूसरे वर्ग के बीच, एक समाज तथा दूसरे समाज के बीच अविश्वास की खाईं ने ऐसी विषम स्थिति पैदा कर दी है कि “वसुधैव कुटुम्बकम्' का आदर्श छिन्न-भिन्न हो गया है। आज का मनुष्य यह नहीं समझ पा रहा है कि उसका मंगल दूसरे के लिए अपने हेतु के उत्सर्ग में है। वह उत्सर्ग के सामाजिक जीवन दर्शन के स्थान पर शोषण के व्यक्तिवादी दर्शन का उपासक बन गया है। परिणाम स्वरूप सभी एक दूसरे से भयभीत, आतंकित एवं शोषणजनित विषमता के कारण दुःखित है। आज विश्व में सबसे उलझा हुआ प्रश्न यह है कि व्यक्ति को सुधारने में सारी शक्ति लगाई जाय या समाज को सुधारने में। एक पक्ष है व्यक्तिवादियों का जो चाहते हैं कि चूंकि व्यक्ति अलग-अलग इकाई है और भिन्न-भिन्न व्यक्तियों या इकाइयों को सुधारा जाय और उनका विकास किया जाय तो इनका असर समाज पर पड़ेगा और समाज में अपने आप सुधार आ जाएगा।१८ दूसरी ओर समाजवादियों का पक्ष है जिसकी सोच यह है कि व्यक्ति-व्यक्ति में कब तक सुधार किया जाय, व्यक्ति बड़ा नहीं है समाज बड़ा है। अत: समाज के जीवन का निर्माण होना चाहिए। ऐसा तब तक नहीं हो सकेगा जब तक व्यक्ति के सोचने की परिधि स्व तक सिमित है या एकान्तिक है। एकान्तिक, एकांशिक, एकांगिक दृष्टियों से समाज में वैयक्तिक विग्रह उत्पन्न होता है। इन दोनों वादों में समन्वय की आवश्यकता है। व्यष्टि निर्माण के बिना सामाजिक निर्माण की कल्पना करना मूल को छोड़कर पत्तियों और शाखाओं को सींचना है। समाज में ऊँचा रहने का अधिकार सिर्फ हमारा ही है इस तरह के कदाग्रहों का जनक एकान्तिक दृष्टिकोण है और अनेकान्तवादी दृष्टिकोण रखकर यदि व्यक्ति-व्यक्ति के विषय में सोचे अपने समान ही दूसरे को समझे, जितना उसका अधिकार समाज पर है उतना ही अन्य का भी है ऐसा सोचे तो "वसुधैव कुटुम्बकम्" "परस्परोपग्रहोजीवानाम्"१९ तथा “संगच्छध्वं संवदध्वं संवो मनांसि जानताम्"२० के आदर्श को चरितार्थ करने वाले एक नये समाज की संरचना हो सकती है जो वर्ग विद्वेष, जातीयता आदि महामारियों से विहीन एक पूर्ण स्वस्थ समाज होगा। क्योंकि पारस्परिक हित साधन की स्वाभाविक वृत्ति ही मनुष्य की सामाजिकता का आधार है। इसके लिए सामाजिक शिक्षा में अनेकान्तवाद को एक आदर्श समाज की स्थापना की प्रक्रिया में दी जाने वाली शिक्षा के यन्त्र के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। ३. राजनैतिक शिक्षा में __भारतीय राजनिति प्रजातान्त्रिक प्रणाली की पोषक है। शासन की प्रणालियों में अधिनायकवाद तन्त्र ही ऐसी प्रणाली है जिसमें स्वदेश के शासन में एकान्तवादी प्रक्रिया के समावेश की सम्भावना रहती है। इसमें एक ही व्यक्ति की आज्ञा काम करती है जो पूर्णतया मात्र एक व्यक्ति के विवेक और संस्कार पर आधारित है। अगर उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525043
Book TitleSramana 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2001
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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