SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिसके परिणामस्वरूप अनेक गणनायकों ने अपने-अपने शिष्यों के साथ विभिन्न प्रदेशों में विहार किया । शान्ति नामक आचार्य सौराष्ट्र देश के वल्लभी नगर पहुँचे —- जहाँ विक्रम की मृत्यु के १३६ वर्ष पश्चात् श्वेताम्बर संघ की उत्पत्ति हुई । ११ इस प्रकार इस कथानक में भद्रबाहु के दक्षिण देश में बिहार का और चन्द्रगुप्त की दीक्षा का कोई उल्लेख नहीं है। पुन: इसमें जिन नैमित्तिक भद्रबाहु का उल्लेख है उनका सत्ता काल विक्रम की दूसरी शताब्दी मान लिया गया है जो भ्रान्त प्रतीत होता है। आचार्य हरिषेण के बृहत्कथाकोश में भद्रबाहु द्वारा बारह वर्षीय दुष्काल की भविष्यवाणी करने, उज्जयिनी के राजा चन्द्रगुप्त द्वारा दीक्षा ग्रहण कर भद्रबाहु से दस पूर्वों का अध्ययन करने तथा विशाखाचार्य के नाम से दक्षिणापथ के पुत्राट देश (कर्नाटक) जाने और रामिल्ल, स्थूलाचार्य और स्थूलभद्र के सिन्धु-सौवीर देश जाने का निर्देश किया है, किन्तु उन्होंने आचार्य भद्रबाहु द्वारा उज्जयिनी के समीपवर्ती भाद्रपद देश (सम्भवतः वर्तमान मन्दसौर का समीपवर्ती प्रदेश) में अनशन करने का उल्लेख किया है । १२ ५ इस प्रकार न केवल श्वेताम्बर स्रोतों में अपितु हरिषेण के बृहत्कथाकोश, १३ श्रीचन्द्र अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थ कहाकोसु (वि. १२वीं शती) और देवसेन के भावसंग्रह में भी भद्रबाहु के दक्षिण देश जाने का कोई उल्लेख नहीं है। बृहत्कथाकोश आदि में उनके शिष्य विशाखाचार्य के दक्षिण देश में जाने का उल्लेख है, १४ किन्तु स्वयं उनका नहीं । उनके स्वयं दक्षिण देश में जाने के जो उल्लेख मिलते हैं वे रामचन्द्र मुमुक्षु के पुण्यास्रवकथाकोश१५ (१२वीं शती), रइधू के भद्रबाहुकथानक १६ (१५वीं शती) और रत्ननंदी के भद्रबाहुचरित्र' ५ ( १६वीं शती) के हैं। इनमें भी जहाँ पुण्यास्रवकथाकोश में उनके मगध से दक्षिण जाने का उल्लेख है, वही रत्ननंदी के भद्रबाहुचरित्र में अवन्तिका से दक्षिण जाने का उल्लेख है। इन विप्रतिपत्तियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि ये कथानक १०वीं से १६वीं शती के मध्य रचित होने से पर्याप्त रूप से परवर्ती हैं। और अनुश्रुतियों या लेखक की निजी कल्पना पर आधारित होने से काल्पनिक ही अधिक लगते हैं। यद्यपि डॉ० राजरामजी ने इसका समाधान करते हुए यह लिखा है कि 'यह बहुत सम्भव है कि आचार्य भद्रबाहु अपने विहार में मगध से दुष्काल प्रारम्भ होने के कुछ दिन पूर्व चले हों और उच्छकल्प (वर्तमान- उचेहरा, जो उच्चैर्नागर शाखा का उत्पत्ति स्थल भी है) होते हुए उज्जयिनी और फिर वहाँ से दक्षिण की ओर स्वयं गये हों या स्वयं वहाँ रुककर अपने साधु-सन्तों को दक्षिण की ओर जाने का आदेश दिया हो । १८ किन्तु मेरी दृष्टि में जब मगध से पूर्वी समुद्रीतट से ताम्रलिप्ति होते हुए दक्षिण जाने का सीधा मार्ग था तो फिर दुष्कालयुक्त मध्य देश से उज्जयिनी होकर दक्षिण जाने का क्या औचित्य था ?, यह समझ में नहीं आता । मेरी दृष्टि में इन कथानकों में सम्भावित सत्य यही है कि चाहे दुष्काल की परिस्थिति में भद्रबाहु ने अपने मुनि संघ को दक्षिण में भेजा हो किन्तु वे स्वयं तो मगध में या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525042
Book TitleSramana 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy