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________________ आचार्य भद्रबाहु का जीवनवृत्त श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु प्रथम के दीक्षा पर्याय के पूर्व के जीवन-वृत्त के सम्बन्ध में प्राचीन आगमिक प्रमाण प्राय: अनुपलब्ध हैं। कल्पसूत्र एवं नन्दीसूत्र की स्थविरावली में उनका जो निर्देश मिलता है, उसमें कल्पसूत्र में उनके गुरु के रूप में यशोभद्र का, शिष्यों के रूप में गोदास, अग्निदत्त, जिनदत्त और सोमदत्त का उल्लेख है। साथ ही भद्रबाहु के शिष्य गोदास से गोदासगण प्रारम्भ होने और उसकी ताम्रलिप्तिका, कोटिवर्षीया, पौण्ड्रवर्द्धनिका और दासीखर्बटिका नामक चार शाखाएँ होने का निर्देश है। ३ यहाँ उनके गृही जीवन से सम्बन्धित दो ही तथ्य उपलब्ध होते हैं- एक तो यह कि उनका गोत्र पाइन्न था, क्योंकि कल्पसूत्र, नन्दीसूत्र और दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति तीनों में ही उनके गोत्र को ‘पाइन' कहा गया है। इस उल्लेख की प्रामाणिकता के सम्बन्ध में कोई भी शंका नहीं की जा सकती है क्योंकि उपलब्ध सूचनाओं में ये निर्देश प्राचीनतम और सभी ईसा की पांचवीं शती के पूर्व के हैं फिर भी ‘पाइन्न' का जो अर्थ पूर्ववर्ती और परवर्ती आचार्यों एवं विद्वानों ने किया है वह मुझे समुचित प्रतीत नहीं होता है। प्राय: सभी ने इसका संस्कृत रूपान्तरण 'प्राचीन' माना है जिसका अर्थ पुरातन होता है और इसी आधार पर आचार्य हस्तीमल जी ने तो यह सिद्ध करने का भी प्रयत्न किया है कि "किसी परवर्ती भद्रबाहु की अपेक्षा पूर्ववर्ती होने से उन्हें प्राचीन कहा गया है।'' किन्तु मेरी दृष्टि में 'पाइन' का अर्थ पौर्वात्य अर्थात् प्राची या पूर्व दिशा का निवासी करना चाहिये। मध्यप्रदेश के ब्राह्मणों में आज भी औदीच्य नामक एक वर्ग है जो अपने को पूर्व दिशा से आया हुआ मानता है। सरयूपारी, पुरवइयां आदि भी पौर्वात्य ब्राह्मण जातियाँ हैं इससे यह भी फलित होता है- भद्रबाहु भारत के अथवा बिहार के पूर्वीय प्रदेश बंगाल के निवासी थे। उनकी शिष्य परम्परा में कोटिवर्षीया, पौण्ड्रवर्धनिका और ताम्रलिप्तिका आदि जो शाखाएँ बनी हैं वे उन्हीं नगरों के नाम पर हैं, जो बंगाल में विशेष रूप से उसके पूर्वी भाग में स्थित थे, अत: भद्रबाहु के पाइन्नं नामक गोत्र का फलितार्थ यह है कि वे पौर्वात्य ब्राह्मण थे। __भद्रबाहु के जन्म-स्थान को लेकर उनसे सम्बन्धित परवर्ती कथानकों में वैविध्य एवं विसंवाद की स्थिति है। कल्पसूत्र, नन्दीसूत्र, दशाश्रुतस्कंध की नियुक्ति, तित्थोगालीपइन्ना, गच्छाचारपइन्ना आदि प्राचीन स्तर के श्वेताम्बर ग्रन्थों में उनके जन्म स्थान का कोई उल्लेख नहीं है। परवर्ती श्वेताम्बर ग्रन्थों- गच्छाचार की दोघट्टीवृत्ति और प्रबन्धकोश' में उन्हें प्रतिष्ठानपुर (वर्तमान पैठन, महाराष्ट्र) का निवासी बताया है। प्रबन्धचिन्तामणि में यद्यपि भद्रबाह के निवास स्थान का तो कोई उल्लेख नहीं हैकिन्तु उनके तथाकथित भाई वराहमिहिर को पाटलिपुत्र का निवासी कहा गया है। ज्ञातव्य है कि प्रतिष्ठानपुर जहाँ दक्षिण महाराष्ट्र में है, वहाँ पाटलीपुत्र (पटना) उत्तर बिहार में है इस प्रकार जन्म स्थान को लेकर श्वेताम्बर स्रोतों में विप्रतिपत्ति है। दिगम्बर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525042
Book TitleSramana 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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