SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ जपाकुसुम के समान गाढ़े लाल रंग की पताका लहरा रही है, तोरणद्वार आम्रपल्लवों से आच्छादित होने के कारण ताम्रवर्ण के प्रतीत हो रहे हैं, सब तरफ (मन्दिर को सजाने के लिए) केसरिया पताकाएँ लटक रही हैं, जिन पर उन्मत्त भ्रमरपंक्ति मँडरा रही है और आँगन सिन्दूर (के गिरकर फैलने) से लाल हो गया है। ऋषभदेव का चित्रण कथमयं सकलदेवताधिचक्रवर्ती नाभिसूनुश्चैत्याभ्यन्तरमलङ्करोति? (सर्वे प्रणमन्ति) भद्राम्भोजमृणालिनी, त्रिभुवनावच्छिदाजाह्नवी, लक्ष्मीयन्त्रणशृङ्खला, गुणकलावल्लीसुधासारणिः। संसारार्णवनौर्विपत्तिलतिकानिस्त्रिंशयष्टिचिरं, दृष्टिभिसुतस्य नः प्रथयतु श्रेयांसि तेजांसि च।। ये देवाधिदेव सकल देवों के चक्रवर्ती नाभिपुत्र भगवान् ऋषभदेव मन्दिर के मध्य भाग को किस प्रकार सुशोभित कर रहे हैं? नाभिपुत्र भगवान् ऋषभदेव के दर्शन, जो कल्याणस्वरूप कमलों के लिए सरोवरतुल्य, तीनों लोकों के पाप को नष्ट करने के लिए गङ्गासदृश, लक्ष्मी को नियन्त्रित रखने के लिए बेड़ी के समान, गुण और कलाओं के प्रसाररूपी अमृत के लिए प्रवाहस्वरूप, संसाररूपी समुद्र को पार करने के लिए नौकासदृश और विपत्तिलता के लिए खड्गस्वरूप हैं, हमारे लिए मङ्गलकारक और बलदायक हों। ११ः यद्यपि प्रस्तुत कृति में नरबलि, पशुबलि की समर्थक तान्त्रिक कर्मकाण्डों का चित्रण अनेक स्थलों पर हुआ है, फिर भी रामचन्द्रसूरि ने एक भी स्थल पर न तो उनका अनुमोदन किया है और न उनके द्वारा उपलब्ध सिद्धि का चित्रण ही किया है, जिससे जनसामान्य की उनके प्रति आस्था उत्पन्न हो। अपितु प्रत्येक प्रसंग पर उनकी विफलता का ही चित्रण किया है। जैसा कि पूर्व में सूचित किया हैएक स्थल पर तो नमस्कारमन्त्र के अचिन्त्य प्रभाव के आगे न केवल उन तान्त्रिक साधनाओं की विफलता का सङ्केत किया गया है, अपितु उसमें स्वयं तान्त्रिक की मृत्यु दिखाकर उनके वीभत्स दुष्परिणामों को भी उजागर कर दिया गया है। पुनः जैसा कि हमने निर्देश किया है, रामचन्द्रसूरि ने ऐसी तान्त्रिक साधनाओं में की १०. यही पुस्तक, पृ० १७७-१७८। ११. यही पुसतक, पृ० १३७-३८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525042
Book TitleSramana 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy