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सम्पादकीय
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प्रोफेसर सागरमल जी जैन एक कुशल विचारक और प्रखर चिन्तक के रूप में आज सर्वमान्य हो चुके हैं। उनके शोधनिबन्धों एवं पुस्तकों ने विद्वानों एवं समाज के बीच एक नई वैचारिक क्रान्ति को जन्म दिया है और वे पूर्वप्रचलित मान्यताओं पर विचार करने के लिये बाध्य हुए हैं। उन्होंने अपने विचारों को अनेक पुष्ट प्रमाणों के आधार पर प्रस्तुत किया है। श्रमण के प्रस्तुत अंक में उनके कुछ विशिष्ट आलेखों- भद्रबाहु सम्बन्धी कथानकों का समीक्षात्मक अध्ययन; 'कौमुदीमित्रानन्द' में प्रतिपादित आचार्य रामचन्द्रसूरि की जैन जीवन-दृष्टि; अंगविज्जा और नमस्कार महामन्त्र की विकास-यात्रा, जीवसमास : एक अध्ययन; अर्धमागधी आगम साहित्य : कुछ तथ्य और सत्य; जैन विद्या के अध्ययन की तकनीक; कषायमुक्ति : किलमुक्तिरेव; स्वाध्याय की मणियाँ; आचार्य हरिभद्रकृत श्रावकधर्मविधिप्रकरण : एक परिचय; अपभ्रंश के महाकवि स्वयम्भू : व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व; जैन परम्परा में काशी; पुण्य की उपादेयता का प्रश्न; Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature पर आंग्ल भाषा में उनके द्वारा लिखा गया गया Introduction तथा डॉ० कमल जैन की Aprigraha--The Human Solution नामक पुस्तक पर लिखा गया Foreword तथा Spiritual Foundation of Jainism आदि को समाहित किया जा रहा है। इससे पूर्व भी आपके लेखों के संग्रह श्रमण के तीन अंकों में विशेषांक के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं। पूर्व के विशेषांकों की भाँति उनके लेखों का यह विशेषांक भी विद्वज्जगत् में समादृत होगा, ऐसा हमारा विश्वास है।
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प्रो० भागचन्द्र जैन प्रधान सम्पादक
श्रमण
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