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________________ १९७ १७ लेख हैं जो विभिन्न विषयों पर आधारित हैं। अपने सम्पादकीय में डॉ० राजाराम जी ने हिन्दी भाषा के उद्भव काल और भोजपुर की साहित्यिक प्रगति पर प्रकाश डाला है। द्वितीय लेख सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ० लक्ष्मीमल जी सिंघवी का है जिसमें उन्होंने 'हिन्दी राजनीति के चक्रव्यूह में' शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दी के बारे में राजनेताओं के दोमुंहे नीति को निर्भीकतापूर्वक उजागर किया है। स्व० अगरचन्दजी नाहटा, डॉ० प्रेमसुमन जैन, डॉ० विद्यावती जैन, डॉ० कमलाकुमारी आदि के उच्चस्तरीय लेखों से युक्त यह अंक प्रत्येक पुस्तकालयों के लिये अनिवार्य रूप से संग्रहणीय बन गया है। ऐसे सुन्दर प्रकाशन के लिये प्रकाशक संस्था और सम्पादक बधाई के पात्र हैं। जैनदर्शन की कहानियां (हिन्दी मासिक), सम्पादक- कांतिलाल मुथा; प्रकाशक- जैन प्रकाशन, ३१, गुलजार चौक, पाली - राजस्थान; मूल्य १४० /- रुपये वार्षिक; १२/- रुपये प्रति अंक; आकार- डिमाई; पृष्ठ ६६ । वर्तमान में बढ़ते इन्द्रियभोग साधन व अन्धाधुन्ध प्रतिस्पर्द्धा के कारण बच्चों को धार्मिक आराधना करने का तो क्या समझने का भी समय नहीं मिलता है। दूरदर्शन व इण्टरनेट के माध्यम से आज की पीढ़ी विदेशी चैनलों के व्यामोह में फंसती जा रही है। आज अभिभावकों के सामने यह एक ज्वलन्त प्रश्न है कि वे अपने सन्तति " को कैसे अच्छे मार्ग पर लगायें। जैनदर्शन की कहानियां (सचित्र) इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। विद्वान् सम्पादक ने पत्रिका में सुन्दर व सचित्र कहानियों द्वारा सभी नैतिक व मानवीय गुणों की आज के समय में प्रासंगिकता व महत्त्व को सरलता से हृदयङ्गम कराया है। छोटी-छोटी प्रासंगिक कथाएं, आकर्षक कवर, रंगीन पृष्ठ, सुन्दर व सुस्पष्ट मुद्रण आदि विशेषताओं से युक्त यह पत्रिका समाज के लिये हितकारी है । सूनुं बधुं नवपद बिना; प्रवचनकार - श्री मुक्तिसागर गणि; गुजराती भाषा में अनुवादिका - साध्वी कोमल लता जी म०सा०; प्रकाशक- श्री अक्षय प्रकाशन, मुम्बई; प्रकाशन वर्ष - वि० सं० २०५६; आकार - डिमाई; पृष्ठ ११+२२४; मूल्य- ५०/रुपये । प्रस्तुत पुस्तक युवा चिंतक, प्रबुद्ध प्रवचनकार श्री मुक्तिसागर गणि जी द्वारा हिन्दी भाषा में दिये गये प्रवचनों का संग्रह बिन नवपद सब सून का गुजराती अनुवाद है। उक्त पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई कि एक वर्ष के अन्दर ही उसका द्वितीय संस्करण भी प्रकाशित करना पड़ा। मुनिश्री द्वारा रचित काव्य संग्रह मेरे गीत नाम से प्रकाशित हुई और वह भी अति लोकप्रिय रही। बिन सुधारस मुक्ति नाहि, भक्ति वगर मुक्ति नथी, तेर त्रासवादी आदि ग्रन्थों में आपके द्वारा विभिन्न अवसरों पर दिये गये प्रवचनों का संकलन है। हिन्दी संस्करण की भांति यह गुजराती संस्करण भी अत्यन्त लोकप्रिय होगा, इसमें सन्देह नहीं । पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक और मुद्रण सुस्पष्ट है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525042
Book TitleSramana 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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