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________________ १२४ कैलाशचन्द्रजी आदि स्याद्वाद महाविद्यालय की उपज हैं। दिगम्बर परम्परा के आज के अधिकांश विद्वान् स्याद्वाद महाविद्यालय से ही निकले हैं। यशोविजय पाठशाला यद्यपि अधिक समय तक नहीं चल सकी किन्तु उसने जो विद्वान् तैयार किये उनमें पं० सुखलालजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में जैन- दर्शन के अध्यापक बने और उन्होंने अपनी प्रेरणा से पार्श्वनाथ विद्याश्रम को जन्म दिया, जो कि आज वाराणसी में जैन विद्या के उच्च अध्ययन का एक प्रमुख केन्द्र बन चुका है। इस प्रकार हम देखते हैं कि पार्श्वनाथ के युग के लेकर वर्तमानकाल तक लगभग अट्ठाइस शताब्दियों के सुदीर्घ कालावधि में वाराणसी में जैनों का निरन्तर अस्तित्व रहा है और इस नगर ने जैन विद्या और कला के विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। संदर्भ : १. ऋषिभाषित, अध्याय, ३१ । २. आचारांगसूत्र, २/१५/९४५ / ३. भगवतीसूत्र, पृ० २३/१| ४. उत्तराध्ययनसूत्र, २३/१। ५. ६. ७. ८. ९. कल्पसूत्र, १४८ | वही, १४८ । अंगुत्तरनिकाय, ७/२९० । कल्पसूत्र, १४८ । मोतीचन्द्र, काशी का इतिहास, पृ० २२। १०. कल्पसूत्र, १५७/ ११. वही, १५७ १२ . वही, १५७ । १३. वही, १५७/ १४. वही, १५६ । १५. ऋषिभाषित, अध्याय ४२ । १६. कल्पसूत्र, १५६ । १७. मोतीचन्द्र, काशी का इतिहास, पृ० ३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525042
Book TitleSramana 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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